pret-yoni-garud-puran.jpg
Garuda and Narayan

श्राद्ध ग्रहण करने पितृलोक से पितर आते हैं? पितृलोक और पूर्वजों पितरों के बारे में सबसे अधिक चर्चा गरूड पुराण में की गई है. आज हम गरूड़ पुराण से जानेंगे कि उसमें क्या कहा गया है.

यह बात तो सभी जानते ही हैं कि पितरों या मृतात्माओं की शांति के लिए गरूड़ पुराण का पाठ कराया जाता है. शास्त्रों में भी गरूड़ पुराण को इसके लिए सबसे ज्यादा विवरणात्मक माना गया है. मृत्यु के बाद की दशा, विभिन्न जन्मों, कर्मफल आदि की चर्चा भी गरूड़ पुराण में ही आती है.

pret-yoni-garud-puran.jpg
Garuda and Narayan

आइए आपको गरूड़ पुराण की एक कथा सुनाता हूं जो आपको ज्ञानवर्धक लगेगी. यहां पर गरूड़ पुराण से जुड़ी एक और बात की चर्चा करते चलें. कहा जाता है कि गरूड़ पुराण को घर में नहीं रखना चाहिए. ऐसी बात कहां से निकली ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता. संभवतः किसी व्यक्ति ने घर में कभी गरूड़ पुराण रखा हो और संयोगवश उसके साथ कुछ अनिष्ट हुआ हो. इसके बाद ऐसी परंपरा चल पड़ी हो कि गरूड़ पुराण घर में न रखें.

या एक अन्य कारण और हो सकता है. ज्यादातर लोगों के नाग कुल देवता होते हैं. गरूड़ और नागों की शत्रुता है. इसलिए भी संभव है कि कुल देवता का सम्मान देने के लिए उस गरूड़ पुराण को न रखने को कहा गया हो जो गरूड़ पर आधारित है.  फिर भी यह सब गरूड़ पुराण को लेकर भ्रम ही है. कोई सही उत्तर अब तक मेरे ध्यान में नहीं आया है.

धार्मिक व प्रेरक कथाओं के लिए प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े, लिंक-

[sc:fb]

इसके साथ-साथ प्रभु शरणम् के फेसबुक पर भी ज्ञानवर्धक धार्मिक पोस्ट का आपको अथाह संसार मिलेगा. जो ज्ञानवर्धक पोस्ट एप्प पर आती है उससे अलग परंतु विशुद्ध रूप से धार्मिक पोस्ट प्रभु शरणम् के फेसबुक पर आती है. प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े. लिंक-
[sc:fb]

भगवान श्रीकृष्ण से पक्षीराज गरुड़ ने पूछा- हे प्रभु! पृथ्वी पर लोग अपने मृत पितरों का श्राद्ध करते हैं. उनकी रुचि का भोजन ब्राह्मणों आदि को कराते हैं. पर क्या पितृ लोक से पृथ्वी पर आकर श्राद्ध में भोजन करते पितरों को किसी ने देखा भी है?

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे गरुड़! तुम्हारी शंका का निवारण करने के लिए मैं देवी सीता के साथ हुई घटना सुनाता हूं.

सीताजी ने पुष्कर तीर्थ में अपने ससुर आदि तीन पितरों को श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मणों के शरीर में देखा था, वह कथा सुनो.

गरूड़! यह तो तुम्हें ज्ञात ही है कि श्री राम अपने पिता दशरथ की आज्ञा के बाद वनगमन कर गये, साथ में सीता भी थीं. बाद में श्रीराम को यह पता लग चुका था कि उनके पिता उनके वियोग में शरीर त्याग चुके हैं.

जंगल-जंगल घूमते सीताजी के साथ श्रीराम ने पुष्कर तीर्थ की भी यात्रा की.

अब यह श्राद्ध का अवसर था ऐसे में पिता का श्राद्ध पुष्कर में हो इससे श्रेष्ठ क्या हो सकता था. तीर्थ में पहुंचकर उन्होंने श्राद्ध के तैयारियां आरंभ कीं.

[irp posts=”6386″ name=”नवरात्रि पूजा जरूर करनी चाहिए, जानें नवरात्र का वैज्ञानिक आधार”]

श्रीराम ने स्वयं ही विभिन्न शाक, फल, एवं अन्य उचित खाद्य सामग्री एकत्र की. जानकी जी ने भोजन तैयार किया. उन्होंने एक पके हुए फल को सिद्ध करके श्रीरामजी के सामने उपस्थित किया.

श्रीराम ने ऋषियों और ब्राह्मणों को सम्मान सहित आमंत्रित किया.

श्राद्ध कर्म में दीक्षित श्रीराम की आज्ञा से स्वयं दीक्षित होकर सीताजी ने उस धर्म का सम्यक और उचित पालन किया. सारी तैयारियां संपन्न हो गयीं. अब श्राद्ध में आने वाले ऋषियों और ब्राह्मणों की प्रतीक्षा थी.

उस समय सूर्य आकाश मण्डल के मध्य पहुंच गए और कुतुप मुहूर्त यानी दिन का आठवां मुहूर्त अथवा दोपहर हो गयी. श्रीराम ने जिन ऋषियों को निमंत्रित किया था वे सभी आ गये थे.

श्रीराम ने सभी ऋषियों और ब्राह्मणों का स्वागत और आदर सत्कार किया तथा भोजन करने के लिये आग्रह किया.

ऋषियों और ब्राह्मणों को भोजन हेतु आसन ग्रहण करने के बाद जानकी अन्न परोसने के लिए वहाँ आयीं. उन्होंने कुछ भोजन बड़े ही भक्ति भाव से ऋषियों के समक्ष उनके पत्तों के बनी थाली परोसा. वे ब्राह्मणों के बीच भी गयीं. पर अचानक ही जानकी भोजन करते ब्राह्मणों और ऋषियों के बीच से निकलीं और तुरंत वहां से दूर चली गयीं.

[irp posts=”4437″ name=”क्यों जरूर करना चाहिए सभी मृतआत्माओं का श्राद्ध?”]

सीता लताओं के मध्य छिपकर जा बैठी. यह क्रियाकलाप श्रीराम देख रहे थे.

सीता के इस कृत्य से श्रीराम कुछ चकित हो गए. फिर उन्होंने विचार किया- ब्राह्मणों को बिना भोजन कराए साध्वी सीता लज्जा के कारण कहीँ चली गयी होंगी.

सीताजी एकान्त में जा बैठी हैं.

फिर श्रीरामजी ने सोचा- अचानक इस कार्य का क्या कारण हो सकता है, अभी यह जानने का समय नहीं. जानकी से इस बात को जानने पहले मैं इन ब्राह्मणों को भोजन करा लूं, फिर उनसे बात कर कारण समझूंगा.

ऐसा विचारकर श्रीराम ने स्वयं उन ब्राह्मणों को भोजन कराया.

भोजन के बाद ऋषियों को विदा करते समय भी श्रीराम के मस्तिष्क में यह बात रह-रहकर कौंध रही थी कि सीता ने ऐसा अप्रत्याशित व्यवहार क्यों किया?

उन ब्राह्मणों के चले जाने पर श्रीराम ने अपनी प्रियतमा सीताजी से पूछा- ब्राह्मणों को देखकर तुम लताओं की ओट में क्यों छिप गई थीं? यह उचित नहीं जान पड़ा. इससे ऋषियों के भोजन में व्यवधान हो सकता था. वे कुपित भी हो सकते थे.

श्रीराम बोले- हे सीते! तुम्हें तो ज्ञात है कि ऋषियों और ब्राह्मणों को पितरों के प्रतीक मान जाता है. ऐसे में तुमने ऐसा क्यों किया? इसका कारण जानने की इच्छा है. मुझे अविलम्ब बताओ.

श्री राम के ऐसा कहने पर सीता जी मुँह नीचे कर सामने खड़ी हो गयीं और अपने नेत्रों से आँसू बहाती हुई बोलीं- हे नाथ ! मैंने यहां जिस प्रकार का आश्चर्य देखा है, उसे आप सुनें.

[irp posts=”7433″ name=”पितृपक्ष में श्राद्धकर्म-तर्पण की सरलतम वैदिक विधि”]

इस श्राद्ध में उपस्थित ब्राह्मणों की अगली पांत में मैंने दो महापुरुषों को देखा जो राजा से प्रतीत होते थे. ऋषियों, ब्राह्मणों के बीच सजे धजे राजा-महाराजा जैसे महापुरुषों को देख मैं अचरज में थी. तभी मैंने आपके पिताश्री के दर्शन भी किए.

वह भी सभी तरह के राजसी वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित थे. आपके पिता को देखकर मैं बिना बताए एकान्त में चली आय़ी थी. मुझे न केवल लज्जा का बोध हुआ वरन मेरे विचार में कुछ और भी अया तभी निर्णय लिया.

हे प्रभो! पेड़ों की छाल वल्कल और मृगचर्म धारण करके मैं अपने स्वसुर के सम्मुख कैसे जा सकती थी? मैं आपसे यह सत्य ही कह रही हूं. अपने हाथ से राजा को मैं वह भोजन कैसे दे सकती थी, जिसके दासों के भी दास कभी वैसा भोजन नहीं करते?

मिट्टी और पत्तों आदि से बने पात्रों में उस अन्न को रखकर मैं उन्हें कैसे देती?

मैं तो वही हूँ जो पहले सभी प्रकार के आभूषणों से सुशोभित रहती थी और आपके पिताश्री मुझे वैसी स्थिति में देख चुके थे. आज मैं इस अवस्था में उनके सामने कैसे जाती?

इससे उनके मन को भी क्षोभ होता. मैं उनको क्षोभ में कैसे देख सकती थी? क्या यह कहीं से उचित होता? इन सब कारणों से हुई लज्जा के कारण मैं वापस हो गयी और किसी की दृष्टि न पड़े इस लिए सघन लता गुल्मों में आ बैठी.

गरुड़जी बोले- हे भगवन आपकी इस कथा से मेरी शंका का उचित निवारण हो गया कि श्रद्धा में पितृगण साक्षात प्रकट होते हैं और वे श्राद्ध का भोजन करने वाले ब्राह्मणों में उपस्थित रहते हैं.

[irp posts=”7705″ name=”श्राद्ध तिथि का निर्धारण कैसे होता है”]

श्राद्ध का भोजन और दान सुपात्र को ही देना चाहिए. श्राद्ध पक्ष में पशु-पक्षियों से दया का भरपूर भाव रखना चाहिए. न जाने किस शरीर में प्रवेश करके पितरगण आएं. (गरूड़ पुराण से)

श्राद्ध कथा शृंखला की 25 कथाओं में यह दूसरी कथा है. आप प्रभु शरणम् से जुड़िए. इसमें आप गरूड पुराण एवं अन्य पुराणों से श्राद्ध कथाएं एवं अन्य कथाएं पढ़ेंगे जो आपको आनंदित करेंगी, आपका ज्ञानवर्धन करेंगी.

धर्म प्रचार के इस मिशन से जुड़िए. नीचे एप्प का लिंक है उसे क्लिक करके एक बार एप्प को डाउनलोड जरूर करें और देखें. नहीं पसंद आए तो डिलिट कर देना पर बिना देखे किसी चीज का मूल्यांकन हो सकता है क्या!!

अब आप बिना इन्टरनेट के व्रत त्यौहार की कथाएँ, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र , श्रीराम शलाका प्रशनावली, व्रत त्यौहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ तथा उपयोग कर सकते हैं.इसके लिए डाउनलोड करें प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प. लेटेस्ट कथाओं के लिए प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प डाउनलोड करें.

Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें

ये भी पढ़ें-
शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद खाना चाहिए? स्त्री शिवलिंग स्पर्श कर सकती है?

एकादशी व्रत पूर्णतया वैज्ञानिक हैं. पढ़ें तो गर्व से सीना फूल जाएगा

पीपलः कब पूजें तो सब सुख मिले, कब छू भी लें तो किस्मत फूटे.

धार्मिक चर्चा में भाग लेने के लिए हमारा फेसबुक ग्रुप ज्वाइन करें. https://www.facebook.com/groups/prabhusharnam

3 COMMENTS

    • आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
      आप नियमित पोस्ट के लिए कृपया प्रभु शरणम् से जुड़ें. ज्यादा सरलता से पोस्ट प्राप्त होंगे और हर अपडेट आपको मिलता रहेगा. हिंदुओं के लिए बहुत उपयोगी है. आप एक बार देखिए तो सही. अच्छा न लगे तो डिलिट कर दीजिएगा. हमें विश्वास है कि यह आपको इतना पसंद आएगा कि आपके जीवन का अंग बन जाएगा. प्रभु शरणम् ऐप्प का लिंक? https://goo.gl/tS7auA

  1. I must say you have very interesting posts here. Your website can go viral.
    You need initial boost only. How to get it?
    Search for: Etorofer’s strategies

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here