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दिन गुजरते रहे. भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में मतंग ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे. मतंग ने दोनों भाइयों का यथायोग्य सत्कार किया.

मतंग ने श्रमणा को बुलाकर कहा, ‘जिस श्रीराम की तुम बचपन से पूजा करती आ रही थीं, वही राम आज साक्षात तुम्हारे सामने खड़े हैं.

श्रमणा भागकर कंद−मूल लेने गई. कुछ क्षण बाद वह लौटी. उसे बेर के सिवा कुछ और न मिल सका.

भगवान को खाने के लिए वह बेरों को देने का साहस नहीं कर पा रही थी. उसे आशंका थी कि कहीं बेर ख़राब और खट्टे न हों. प्रभु ठहरे राजकुमार. वह ऐसे जंगली बेर क्यों खाएंगे भला.

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