राजा सहस्रणीक और मृगावती के मिलन में अब बस एक रात की देरी थी. इस बैचैनी की रात राजा ने अपने नौकर से मनोरंजक कहानी सुनकर काटने की सोची तो नौकर ने श्रीदत्त की कथा. यह विछोह और मिलन की ही कहानी थी.
पिछली कथा से आगे…
श्रीदत्त हाथ में मृगांक तलवार लिये उस औरत पर झपट पड़ा जो आधी रात को उसके दोस्त निष्ठुरक को मारकर खा रही थी. जैसे ही श्रीदत्त करीब पहुंचा वह स्त्री राक्षसी में बदल गयी.
श्रीदत्त के चंगुल से जैसे ही वह भागने को हुई श्री दत्त ने चोटी पकड़ ली. वह तलवार का एक भरपूर वार करने ही वाला था कि वह राक्षसी एक सुंदरी बन गयी.
वह सुंदरी बोली- मुझे मत मारो मैं राक्षसी नहीं हूं. श्रीदत्त वार करने से ठिठका तो सुंदरी सुबकने लगी. वह बोली- मेरा यह हाल विश्वामित्र के चलते हुआ है.
एक बार विश्वामित्र कुबेर का राज वैभव हथियाने के लिए घोर तपस्या करने लगे. कुबेर डर गया, उसने मुझे अपनी सुंदरता का इस्तेमाल कर उनकी तपस्या भंग करने को भेजा.
मैंने बहुतेरी कोशिशें की पर विश्वामित्र न डिगे. हारकर और हताश होकर मैं राक्षसी का रूप धर उन्हें डराने लगी. इस हरकत से गुस्साकर विश्वामित्र ने मुझे श्राप देते हुये कहा- जा तू राक्षसी ही हो जा.
मैं डरकर थर-थर कांपने लगी, उनके पैरों में गिर गई. उनको दया आयी. उन्होंने मुझे शापमुक्ति का रास्ता बताया- जब श्रीदत्त तेरी चोटी पकड़ेगा तो तू शापमुक्त हो जायेगी.
तब से मैं राक्षसी बन इसी गांव में रहती हूं जो सदा उजड़ा रहता है, मैं इसे बसने ही नहीं देती. जो भूला भटक आ जाये मेरा आहार होता है. आपने मुझे श्रापमुक्त किया सो जो चाहे मुझसे मांग सकते हैं.
श्री दत्त ने कहा मेरे मित्र निष्ठुरक को जिंदा कर दो, बस. निष्ठुरक जिंदा हो गया और सुंदरी अंतर्धान हो गयी. श्रीदत्त उज्जैयिनी जाकर अपने मित्र बाहुशाली के घर रहने लगा.
एक बार बाहुशाली के साथ वह बसंत मेले में गया जहां राजा बिंबक की बेटी मृगांकवती ने उसे और उसने मृगांकवती को देखा. दोनों एक दूसरे पर मुग्ध हुये.
मृगांकवती मेले में दूसरी तरफ गयी तो उसे सांप ने काट लिया. बाहुशाली ने राजा के सेवकों से कहा मेरे मित्र के पास ऐसी अंगूठी है जिससे किसी भी तरह का जहर छूते ही उतर जाता है.
मृगांकवती को वह अंगूठी पहनायी गयी. श्रीदत्त की विषनाशक अंगूठी पहनते की जहर छू मंतर हो गया. श्रीदत ने वह अंगूठी वापस नहीं ली तो राजा ने ढेर सारा सोना दिया.
वह सोना श्रीदत्त ने बाहुशाली के पिता को दे दिया. श्रीदत्त पर मुग्ध मृगांकवती ने अंगूठी वापस करने के बहाने अपनी सखी के जरिये श्रीदत्त के पास विवाह प्रस्ताव भेजा. हालांकि राजा तैयार न था.
राजकुमारी ने श्रीदत्त से राज्य छोड़कर कहीं और चल चलने का प्रस्ताव दिया. तय हुआ कि यहां से मथुरा चला जाय. बाहुशाली अपने दो मित्रों के साथ पहले ही मथुरा निकल गया.
राजकुमारी ने एक स्त्री और एक लड़की को नशीला पदार्थ दे कर महल अपने महल में सुला दिया और महल को आग लगा दिया. मृगांकवती की सखी चुपके से उसे बाहर निकाल लायी.
उधर राजा ने एक औरत और लड़्की की राख हुये शव को देख समझा राजकुमारी अपने सखी संग जल मरी. श्रीदत्त के दो दोस्तों के साथ राजकुमारी की सखी और राजकुमारी विंध्याचल की ओर चली.
दूसरे दिन श्रीदत्त वहां पहुंचा तो उसने देखा. सब लोग घायल पड़े हैं. मित्रों ने बताया राजकुमारी को एक घुड़सवार लूट ले गया. श्रीदत्त ने पीछा किया.
घुड़सवार के साथ बहुत सारे लोग थे, उसने राजकुमारी को वापस मांगा, न देने पर श्रीदत्त ने मृगांक तलवार के कारनामे से सबको मार भगाया और राजकुमारी को लेकर वापस चला.
रास्ते में उसका घायल घोड़ा मर गया. पैदल चलने से राजकुमारी को भीषण प्यास लगी. श्रीदत्त पानी तलाशने निकला तो खोजते खोजते रात हो गयी. अंधेरे में रास्ता भी गुम हो गया.
सवेरे किसी तरह अपनी जगह पहुंचा तो वहां राजकुमारी न थी. वह पेड़ पर चढ इधर उधर देखने लगा. उसकी मृगांक तलवार नीचे ही धरी थी. इस बीच डाकुओं का सरदार वहां आया और उससे तलवार ले ली.
श्रीदत्त ने उससे राजकुमारी के बारे में पूछा और तलवार मांगी. सरदार ने उससे कहा कि यदि अपनी पत्नी को प्राप्त करना है तो घर चलो. दोनों मिल जाएंगे. श्रीदत्त के पास कोई रास्ता नहीं था.
वह डाकुओं के सरदार के घर पहुंचा. सरदार ने सोते समय श्रीदत्त को बेडियों से जकड़ दिया. सरदार की पत्नी को उस पर दया आई. उसने बताया कि उसकी पत्नी यहां नहीं है और सरदार जल्द ही तुम्हारी बलि देवी के सामने देने वाला है.
इस शृंखला की सभी कथाएं बहुत लंबी हैं. एक का दूसरे के साथ बड़ा नाता है. हर कथा के पात्रों का कहीं न कहीं कोई तानाबाना होता है. इसलिए भी इसे तोड़ना जरूरी है अन्यथा समझ नहीं आएगा. श्रीदत्त की कथा 9.30 बजे की पोस्ट में पूरी कर देंगे.
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश