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संध्या ने वशिष्ठ द्वारा बताए मंत्र से शिवजी का ध्यान किया और शिव प्रसन्न हो गए. संध्या के नेत्र शिवजी के तेज को सहन नहीं कर पाए और उसने आंखें मूंद ली. शिवजी भक्त के हृद्य में प्रवेश कर गए. तब संध्या ने उनका दर्शन और स्तुति की.
संध्या की स्तुति से प्रसन्न शिवजी ने उससे इच्छित वरदान मांगने को कहा. संध्या ने मांगा- प्रभु युवावस्था से पूर्व किसी के मन में भी कामेच्छा जागृत न हो. उसके मन में काम उत्पन्न न हो और वह पथभ्रष्ट न हो. शिवजी ने वरदान दे दिया.
शिवजी से वरदान प्राप्तकर संध्या मेधा मुनि की यज्ञशाला में पहुंची. मुनि ने उनकी साधना की बात सुनी तो बड़े प्रसन्न हुए औऱ उन्हें पुत्रीरूप में स्वीकार कर लिया. उसके बाद मुनि ने उसे अरुंधति नाम दिया और वशिष्ठ से विवाह कर दिया.
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