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वृकासुर को पहले ही आशंका थी, अब ब्रह्मचारी ने कहा तो वृकासुर बड़ा निराश हुआ.

कहने लगा- मुझे तो देवर्षि नारद ने कहा था कि शिव की आराधना करो. वे ही शीघ्र प्रसन्न होकर मनचाहा वर दे सकते हैं.

ब्रह्मचारी ने कहा- तुम बड़े भोले हो, नारद पर विश्वास कर लिया. वह तो ऐसा घुम्मकड़ साधु है, जो सबको उलटी सलाह देता है. तुम्हें मेरी बात का विश्वास न हो तो खुद अपने ही सिर पर हाथ रखकर देखो कि कैसे शिव ने तुम्हें झूठा वर देकर छला है.

श्रीहरि ने उसकी झूठी प्रशंसा करके उसका विश्वास जीत लिया था. क्रोध और उत्तेजना के कारण उसकी बुद्धि पहले ही निष्क्रिय हो गई थी, प्रशंसा ने तो तो उसकी मत पूरी तरह से ही मार दी थी. उसने ध्यान ही नहीं आया कि अपने स्थान पर वह इस व्यक्ति पर भी परख सकता था.

वृकासुर ने ब्रह्मचारी बने भगवान के सुझाव पर वरदान की परीक्षा करने के लिए अपने सिर पर हाथ रखा और तत्काल ही भस्म हो गया.

इस तरह श्रीहरि की सूझबूझ से शिवजी एवं अन्य देवताओं की चिंता मिटी. शिवजी वहां प्रकट हुए. उन्होंने श्रीहरि को और श्रीहरि ने उन्हें प्रणाम किया.

श्रीहरि बोले- प्रभु आज से जो भी जीव अपने उपर उपकार करने वाले के प्रति कृतघ्नता दिखाएगा उसके सारे संचित पुण्य नष्ट होते जाएंगे. जिस लोभ में वह कृतघ्नता करेगा एक दिन वही उसके अंत का कारण बनेगा. ऐसे जीव धीरे-धीरे करके अपने अंत की ओर स्वयं जाएंगे और उन्हें पता भी नहीं चलेगा जैसे इस वृकासुर के साथ हुआ.

यह कथा सभी जीवों के लिए एक संदेश है. उपकार करने वाले के साथ छल नहीं करना चाहिए. जो दूसरों का बुरा चाहते हैं उनकी गति वृकासुर जैसी होती है.

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