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एक राजा के आदेश पर पूरी प्रजा एकादशी का व्रत रखती थी. राजा ने घोषणा करा रखी थी कि कोई भी एकादशी को भोजन नहीं करेगा. फलाहार करके रहना होगा. बड़ा कठोर नियम लागू था.
यहां तक कि पशुओं को भी एकादशी को चारा नहीं दिया जाता था. वैसे राजा दुष्ट नहीं था. एक महात्माजी ने बताया था कि एकादशी का व्रत रखने से मोक्ष मिल जाता है. राजा ने महात्माजी की बात अधूरी सुनी.
उसने सोचा कि क्यों न स्वयं को और प्रजा दोनों को मोक्ष दिलाया जाए ताकि बार-बार जन्म लेने के झंझट से छुटकारा हो जाए. इसीलिए एकादशी का कठोर नियम प्रजा और यहां तक कि मवेशियों पर भी लागू था.
एक दिन दूसरे राज्य से एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें. दयालु राजा उसे नौकरी देने को मान गया लेकिन उसने एक शर्त रखी कि एकादशी को खाने को अन्न नहीं मिलेगा.
बेरोजगार आदमी ने उस समय तो ‘हाँ’ कर ली, लेकिन जब एकादशी को उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने पहुंचा और गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा. मैं भूखा ही मर जाऊँगा. मुझे खाने को अन्न दीजिए.
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