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डाकिनी राजकुमारी कथा के पहले भाग में पढ़ा कि राजकुमारी ने संकेतों में अपना पता बताया जिसे राजकुमार के मित्र ने समझा और दोनों राजकुमारी से मिलने पहुंचे.

वहां उन्होंने राजकुमारी की धाय को राजकुमारी तक संदेशा पहुंचाने के लिए राजी कर लिया लेकिन राजकुमार का संदेशा लेकर गई धाय को उत्तर में राजकुमारी ने हाथों में चंदन लगाकार एक थप्पड़ मार दिया. राजकुमारी ने इस तरह एक और संकेत दिया. अब आगे

राजकुमार तो हक्का-बक्का रह गया, उसके समझ में नहीं आया कि यह कैसी प्रतिक्रिया है. तालाब पर तो जब राजकुमारी ने उसे देखा था उसकी आंखों में जो पढा था वह ऐसा तो न था. उसने मित्र से पूछा क्या इसमें कोई संकेत है?

मित्र ने समझाया- उसने अपनी दसों उंगलियां जनबूझकर सफ़ेद चन्दन डुबोकर मारीं. उसका अर्थ है कि अभी दस रोज़ चांदनी के हैं. उनके बीतने पर अंधेरी रात में आपसे मिलूँगी. उसने बुढिया से कहा कि राजकुमारी उस पर गुस्सा नहीं. गुप्त संदेश देने के लिए ऐसा किया.

राजकुमारी नीयत समय पर मिलने नहीं आई. बुढ़िया ने फिर राजकुमारी को संदेशा दिया. इस बार उसने केसर के रंग में तीन उंगलियां डुबाकर बुढिया के मुंह पर मारीं और भगा दिया.

बुढ़िया ने आकर सारी बात सुना दी. दीवान के लड़के ने बताया नियत समय पर वह जो मिलने न आ सकी इसका उत्तर उसने दिया है. उसने कहा है कि आकुल न हों, मुझे मासिक धर्म हो रहा है. तीन दिन और ठहरो. मिलुंगी

तीन दिन बीतने पर बुढ़िया जब पहले जैसा संदेश लेकर राजकुमारी के पास फिर पहुंची तो इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार कर अपने कक्ष में पश्चिम दिशा की ओर खुलने वाली खिड़की से बाहर निकाल दिया.

बुढिया ने घर आकर यह बात भी जस की तस कह दी. राजकुमार ने जब बुढिया की मित्र को बताईं तो उसे सुनकर दीवान का लड़का बोला- मित्र, उसने आज रात को तुम्हें उस पश्चिम की खिड़की की राह से बुलाया है.

खुशी के मारे राजकुमार फूला न समाया. समय आने पर उसने बुढ़िया की पोशाक पहनी, इत्र लगाया, हथियार बांधे. इसी वेश में वह दो पहर रात बीतने पर किसी तरह छिपते छिपाते महल के भीतर जा पहुँचा. देखा पश्चिम की खिड़की वास्तव में खुली है.

राजकुमार खिड़की के रास्ते कमरे में पहुंचा. राजकुमारी तैयार खड़ी थी. वह उसे भीतर ले गयी. रात-भर राजकुमार राजकुमारी के साथ आमोद-प्रमोद में डूबा रहा. दिन निकलने को आया तो राजकुमारी ने उसे आरामदायक स्थान पर छिपा दिया.

रात होने पर फिर बाहर निकाल लिया. राजकुमार को राजकुमारी के साथ आनंद से रहते कई दिन बीत गए. अचानक एक दिन राजकुमार को अपने मित्र की याद आयी. उसे चिन्ता हुई कि पता नहीं वह कहां होगा और उसका क्या हुआ होगा?

राजकुमार को उदास देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा तो उसने बताया कि मेरा दोस्त बड़ा चतुर है. उसका चातुर्य और ज्ञान नहीं होता तो तुम मुझे मिल नहीं पाती.

राजकुमारी ने कहा- मैं उसके लिए बढ़िया-बढ़िया भोजन बनवाती हूं. तुम उससे मिलकर, उसे खिलाकर, तसल्ली देकर शीघ्र ही पहले की तरह उसी मार्ग से लौट आना.

खाना लेकर राजकुमार अपने मित्र के पास पहुंचा. उसकी चतुराई की प्रशंसा की. अपने सुख के दिनों के समाचार साझा किए. वे महीने भर से मिले नहीं थे, राजकुमार ने मिलने पर सारा हाल विस्तार से सुनाया.

राजकुमार ने बताया कि कल ही राजकुमारी को मैंने अपनी तुम्हारी मित्रता और चतुराई की सारी बातें बता दी हैं. वह तुमसे प्रभावित है. उसने विशेष भोजन देकर तुमसे मिलने भेजा है.

दीवान का लड़का सोच में पड़ गया. उसने कहा- यह आपने अच्छा नहीं किया राजकुमार. राजकुमारी समझ गयी है कि जब तक मैं हूँ, वह तुम्हें अपने वश में नहीं रख सकती. मुझे मारने के लिये उसने इस खाने में ज़हर मिलाकर भेजा है.

यह कहकर दीवान के लड़के ने थाली में से एक लड्डू उठा कर पास ही घूम रहे एक कुत्ते के आगे डाल दिया. खाते ही कुत्ता मर गया. राजकुमार को बड़ा बुरा लगा. उसने कहा- ऐसी स्त्री से भगवान बचाए! मैं अब उसके पास भी नहीं जाऊंगा.

राजकुमार को पद्मावती से घृणा होने लगी. उसे राजकुमारी के व्यवहार से कुछ आश्चर्य तो कुछ भय भी हो रहा था. वह निराश होकर बैठ गया और राजकुमारी के साथ बिताए मोहक पलों को याद करने लगा. मित्र ने उसका हाल देखा तो कुछ उपाय सूझा. कथा का अंति भाग कुछ देर में…

संकलन- सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

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