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एक पूरा मटका हीरे-जवाहरात का भरा! पंडितजी ने कहा- आप जब कहें यजमान चल पड़ते हैं.
पंडितजी घड़ियाल को लेकर त्रिवेणी गए और घड़ियाल को त्रिवेणी में छोड़ दिया. घड़ियाल ने भी अपना वादा निभाया.
उन्हें रत्नों से भरा हुआ मटका दे दिया. पंडितजी ने भी घड़े को भली-भांति देख लिया और मटके में भरे हीरे जवाहरात को देखकर आनंदित हुए.
घड़ियाल का भी काम हो चुका और पंडितजी का भी काम पूरा हुआ. पंडितजी अपने धन को कलेजे से चिपकाए विदा होने लगे तो घड़ियाल उन्हें देखकर हंसने लगा.
घडियाल को हंसते देखकर पंडित ने पूछा- तुम हंस रहे हो? इसका क्या कारण है?
घड़ियाल ने कहा- पंडितजी मैं कुछ न कहूंगा. मनोहर नाम के धोबी के गधे से अवंतिका में पूछ लेना. वही बताएगा कि मैं आप पर हंस क्यों रहा हूं. बस इतना बता दूं कि मैं अकारण नहीं हंस रहा.
घड़ियाल ने यह कहकर पंडितजी के मन में धनप्राप्ति से आया सारा उत्साह, सारी खुशी समाप्त कर दी.
पंडित के मन में अब तो बेचैनी बहुत बढ़ने लगी कि कारण जानने की.
इससे भी ज्यादा दुख पंडित को इस बात का हो रहा था कि घड़ियाल ने पूछने को कहा भी तो धोबी के गधे से. मेरे जैसा ज्ञानी घड़ियाल जैसे मलेच्छ जीव के हंसने का कारण पूछे तो वह भी धोबी के गधे से.
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