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आगे चलकर राजा की बहन का घर पडा. राजा की बहन ने पुराने महल में ठहराया और सोने के थाल में उन्हें खाना भेजा तो थाल मिट्टी की परात में बदल गया. परात को जमीन में गाडकर वे फिर भाग निकले.
रास्ते में एक साहूकार का घर आया. साहूकार ने नल और दमयंती के ठहरने की व्यवस्था जिस हवेली में की वहाँ खूंटी पर हीरों का हार टंगा था. पास ही दीवार पर मोर का चित्र बना था. देखते ही देखते मोर हार को निगलने लगा. यह अचरज देखकर वे वहाँ से भी चोरी के डर से भाग चले
दमयंती ने सलाह दी कि शहर की ओर भागने से बेहतर है जंगल में कुटिया बनाकर रहा जाये. वे जंगल में तो नहीं गये पर एक सूखे बगीचे में रहने लगे. दोनो बगीचे को सींचते और देख रेख करते.
दोनों की मेहनत से वह बगीचा हरा भरा हो गया तो एक दिन बगीचे का मालिक वहाँ आया और खुश हो कर पूछा तुम दोनों कौन हो. नल और दमयंती ने कहा हम मुसाफिर हैं. नौकरी खोजते हैं. बाग़ के मालिक ने उन्हें अपने यहां नौकर रख लिया.
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