कृष्ण-ने-गोपियों-के-वस्त्र-चुराएं
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योगीश्वर भगवान श्रीकृष्ण के गोपियों के वस्त्र चुरा लेने वाली बात को उठाकर उनके व्यक्तित्व पर लांछन लगाने की कोशिश होती है. उन्हें रासलीला में लिप्त कामुक बताने का प्रयास होता है. यह बहुत बड़ा षडयंत्र हैं. रासलीला के नाम से प्रचारित होने वाले इस षडयंत्र में अधकचरा ज्ञान रखने वाले कथावाचक शामिल हैं.

बहुत समय से इस पर लिखना चाहता था. भगवान के प्राक्टयोत्सव पर इस बारे में पोस्ट देखा तो बहुत दुख हुआ. इसलिए आज ही चर्चा जरूरी है. आप बहुत ध्यान से समझिए इस षडयंत्र को और लोगों को सावधान करें. रासलीला के झूठ पर आंखें खोलने वाली पोस्ट. 

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श्रीकृष्ण के जीवन में आठ साल की उम्र के बाद से तो जैसे युद्ध ही युद्ध शुरू हो गया था. सात साल की उम्र तक ही वह खुलकर गोकुल की गलियों में रह सके. बलराम की आयु 11 साल थी. यानी उन्होंने जो भी उधम मचाया था वह सब सात साल की उम्र तक का ही था. इसी में आप उस तथाकथित रासलीला को भी शामिल कर सकते हैं.

अब आते हैं उसी रासलीला, राधाजी के साथ प्रेम और गोपियों के वस्त्रहरण की. खासतौर से वस्त्रहरण की बात करूंगा जिसके लिए उन्हें मनचला या अश्लील हरकतें करने वाला बता दिया जाता था.

 

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सात वर्ष का एक बालक, जो बचपन से स्वभाववश शरारती लेकिन समय-समय पर अद्भुत ज्ञान देकर लोगों को चकित कर देने वाला, ने क्या किसी अश्लील भावना से स्त्रियों के वस्त्र चुराए होंगे. क्या वह उनके प्रति कामुक भाव रख सकता है. हमें अपने आसपास से चीजों को समझना चाहिए.

अपनी ही बात करता हूं. मैं बहुत छोटा था तो मेरी मामी जो मेरी मां की हमउम्र थीं, कहा करती थीं कि राजन आप मुझसे शादी करेंगे. मैं गुस्से में उन्हें या तो मुंह चिढ़ाता था, या फिर मां से शिकायत करता था या फिर कोशिश करता था कि वह सामने ही न पड़ें. और मैं जितना यह सब स्वांग करता, वह उतना ही चिढ़ाया करतीं.

आज मामी जी कृष्णधाम चली गई हैं लेकिन उनका वह स्नेह वह प्रेम एकदम दिमाग पर छपा हुआ है तीन दशक बाद भी. तो क्या मेरी मामी मेरे साथ अश्लील संबंध रखना चाहती थीं? सात-आठ साल के बच्चे के साथ, यह कोई सोच भी सकता है? अगर सोच सकता है तो फिर उसे दिमागी इलाज की जरूरत है.

तो कृष्ण जब पांच- सात साल की उम्र के रहे होंगे तो महिलाओं को नंगा देखने की हसरत रखते होंगे? उस उम्र के बालक ऐसा सोचते हैं! गांव घरों में जहां पुरुषों और स्त्रियों के लिए अलग व्यवस्था रहती है. पुरुष अमूमन दिन में घर के अंदर नहीं आते, बाहर बैठक में या फिर काम पर रहते हैं वहां स्त्रियां अपने वस्त्रों का कितना ख्याल रखती हैं. आप स्वयं सोचें. पांच-सात साल के बच्चे के साथ कितना पर्दा करती हैं औरतें, कितना ढंक के रखती हैं? उनके लिए वह बच्चा है, जिसके लिए उनके मन में सिर्फ और सिर्फ वात्सल्य हो सकता है और कुछ नहीं. बच्चा भी वही भाव रखता है.

वेदों के प्रमुख देवताओं में जल के देवता वरूण हैं. वरुण की उपासना के संदर्भ में कहा गया है कि पवित्र सरोवरों या नदियों में निवस्त्र प्रवेश करने पर वरुण का अपमान होता है और उस व्यक्ति या परिवार पर वरुण के कोप से जलजन्य भय होता है. डूब सकता है, बाढ़ में फंस सकता है आदि आदि…

व्रज की कन्याओं को इसका पता न था. कृष्ण ने उन्हें सबक सिखाया हो कि बिना वस्त्र जल में प्रवेश से वरुण का अपमान नहीं करना चाहिए. या अगर जल में मगरमच्छ या कोई और जीव हमला कर दे तो वे जान बचाने और मदद मांगने के लिए बाहर भागेंगी तो क्या नग्न भागेंगी. इससे सावधान करने के लिए भी तो उनकी यह लीला हो सकती है. हम इस तरह क्यों नहीं सोच सकते.

और सबसे महत्वपूर्ण बात, श्रीकृष्ण की कथाओं-लीलाओं का सबसे प्रमुख स्रोत है श्रीमद्भागवत पुराण. भागवत पुराण में न तो राधाजी का जिक्र है न ही वस्त्रहरण का कोई अश्लील वर्णन. गर्ग संहिता और दूसरी जगहों पर यह सब आता है. लेकिन यह सब कितना विश्वसनीय है, हरि जाने.

आठ वर्ष से 10 साल की आयु के बीच नंदजी ने श्रीकृष्ण को लेकर मथुरा छोड़ दिया था और उन्हें अलग-अलग स्थानों पर कंस से छुपाते रहे. अंततः 10 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद और ग्यारहवें वर्ष में उनका कंस से सामना हो ही गया और कंस वध हुआ. वसुदेव जी राजा बने तो पुत्र को शिक्षा के लिए भेजना जरूरी था. आप उज्जैन के सांदीपनि आश्राम जाएं तो वहां से जो जानकारी मिलती है उसके अनुसार 11 वर्ष सात दिन की आयु में श्रीकृष्ण वहां पढ़ने आए थे. 64 दिनों तक रहकर 64 विद्याएं और सोलह कलाएं सीखीं.

कंस का ससुर जरासंध उस समय का सबसे प्रतापी राजा था. हरिवंश पुराण के अनुसार उसने काशी, कोशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, पांड्य, सौबीर, मद्र, कश्मीर और गांधार पर कब्जा करके उनकी सेनाओं के साथ 18 बार मथुरा पर आक्रमण किया और 17 बार परास्त हुआ. यानी कृष्ण का जीवन उसके बाद तो युद्ध करते ही बीता और युद्ध की स्थिति इस हद तक रही कि उन्होंने मथुरा छोड़ दिया और द्वारका चले गए.

अब आते हैं वस्त्र हरण वाली बात पर फिर से. 8 से 11 साल तो भागते बीता, दिन-रात पिता की साया में, और असुरों से लड़ते. उस दौरान वह स्त्रियों को नग्न देखने जैसा कुछ करते इसके बारे में सोचना मूर्खता है. एक तो पिता एक मिनट को आंख से ओझल करने को तैयार नहीं ऊपर से हर घड़ी मौत के दूत खड़े. उसके बाद कंस को मारना और फिर गुरुकुल जाना, लौटते ही जरासंध का 17 बार सामना करना. इस दौरान अगर यह सब सोच रहे हों तो मूर्खता की अति ही है और अगर सात साल से कम उम्र के बच्चे के बारे में ऐसे ख्याल आते हैं तो फिर सच में मानसिक चिकित्सा की जरूरत है.

जब भागवत में है नहीं तो यह सब आया कैसे. दरअसल बहुत सारी चीजें कथाकारों ने जोड़ दी हैं. शुरुआत में तो हो सकता है कि प्रेमवश जोड़ा होगा पर निश्चित रूप से आगे चलकर कामुकता से भरे कथाकारों ने इसकी ऐसी व्याख्या की होगी जिसे विधर्मियों ने ब्रह्मवाक्य समझकर लपेट लिया. आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देवी देवताओं का रंग-रूप कैसे था, गोरे-काले थे, चार हाथ वाले थे कि दो वाले, कद काठी कैसी थी… यह सब राजा रवि वर्मा की कल्पना है.

बेशक उन्होंने शास्त्रों से संदर्भ लिया है लेकिन आज कैलेंडरों या तस्वीरों में भगवान को जिस तरह देखते हैं या कल्पना करते हैं न वह वास्तव में एक पेंटर राजा रवि वर्मा की कल्पना ही है. उसके बाद लोगों ने कुछ इन कथाकारों की कल्पनाओं को कुछ अपनी कल्पनाओं को मिला-जुलाकर तस्वीरों में डालना शुरू किया. धीरे-धीरे यह स्थापित हो गया और आगे चलकर यही स्थापित हो गया. तो गलती किसकी? भगवान की? उन्होंने जो किया नहीं उसका आक्षेप लगा दें.

सोचिए कि आप पर कोई आरोप लगा दे कि आपने अपने घर-परिवार की या आस-पड़ोस की या किसी भी महिला के साथ अश्लीलता का प्रयास किया है जो आपने न किया हो तो कितना चुभेगा! आपके मन में यह ख्याल भी नहीं आना चाहिए श्रीकृष्ण के बारे में. पूत के पांव पालने में नजर आते हैं. इसे रिवर्स कर लेते हैं. जो मुंहबोली बहन द्रौपदी की एक पुकार पर चले आए, जिसने गीता का प्रवचन दिया जिसका मुकाबला कोई भी शास्त्र-ग्रंथ नहीं कर सकता वह बचपन में इस तरह का छिछोरा हो सकता है!

विधर्मियों द्वारा फैलाई गई है इन बातों का कारण समझिए. यह दरअसल गीता और श्रीकृष्ण को क्रमशः अपमानित करते हुए भारत के जनमानस से बाहर करने की कोशिश है. दिवोदास का नाम सुना है? संक्षेप में बता देता हूं. शिवजी ने अपने ही एक भक्त को काशी का प्रभारी बना दिया और कैलाश पर रहने लगे. उसके वंशजों में से एक दिवोदास बहुत धर्मपरायण था. कैलास से शिवजी कासी आते न थे.

दिवोदास ने धीरे-धीरे काशीवासियों को यह बताना शुरू किया कि वह ही शिव है. कई पीढियों ने शिवजी को कभी देखा न था, उनकी चर्चा सुनी न थी सो दिवोदास को ही शिव मानने लगे. जब पार्वतीजी ने कहा कि कैलास मेरा मायका है यहां नहीं रहना चाहिए आप काशी चलिए. तो काशी में कोई शिव का नाम लेने वाला ही न था. दिवोदास की काशी कहलाने लगी. बड़ी मुश्किल से गणेश जी, सूर्यदेव और श्रीहरि ने मिलकर काशी के लोगों को शिवस्मरण कराया था. यानी ऐसा लाखों साल पहले हो चुका है. दिवोदास की कथा नीचे दिए लिंक से पढ़ सकते हैं. (शिवजी की काशी में एक शिवभक्त….)

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आप कहीं इस युग के दिवोदासों के फेर में तो नहीं उलझ रहे? धीरे-धीरे नाम गायब. जो बचे भी वह एक अश्लील राजा का. मैं यह नहीं कहूंगा कि आपको किससे और कहां सावधान रहना है. मनन करना है कि कहां से असली हानि हो रही है. यह सोचना आपका विषय है. मैं तो बस चीजों को जोड़कर एक दिशा देने की कोशिश कर रहा हूं सोचने का.

हो सकता है मेरी बात गलत हो, पर सही भी तो हो सकती है. और अगर एकदम सही रही तो उसका परिणाम क्या होगा? कल्पना कीजिए, जन्माष्टमी न मन रही होगी. नुक्कड़ों पर गोष्ठियां हो रही होंगी, मोमबत्तियां जल रही होंगी और एक अश्लील, कामुक राजा जिसने बहुत बड़ी लड़ाई कराई और फिर खुद को भगवान प्रोजेक्ट कर लिया- इस टाइप के व्याख्यान हो रहे होंगे. देर बहुत देर हो चुकी होगी तब तक.

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फिर अधर्म का नाश करने के लिए भगवान को अवतार लेना पड़ेगा. पर इस बार भगवान जल्दी नहीं लेंगे क्योंकि नालायकों के लिए भगवान क्यों इतना लोड लें. उनको क्या फर्क पड़ता है जो करना है करो. समझना है तो समझ जाओ जी, नहीं तो जय राम जी की.
गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो, राधारमण हरि गोविंद बोलो….

रमण का अर्थ सिर्फ कामुकता से लगाने वालों को भगवान सद्बुद्धि दें. ओशो ठीक ही कहते हैं, जो दिमाग में भरा है उसे निकालने की कोशिश करके समय मत खराब करो. बस कोशिश करो कि अपने दिमाग में वह कचरा न आने पाए. मित्रगणों आपके लिए यही मैसेज था. अपने दिमाग में कचरा न आने पाए.
जन्माष्टमी की मंगलकामनाएं.

– राजन प्रकाश

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