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कोई दर्शन बघारने लगा तो कोई लोक-परलोक पर भाषण करने लगा. कुछ लोग आयोजकों को भी कोसने लगे कि उन्हें दलदल के पास बाड़े लगवाने चाहिए थे.
एक आदमी के प्राण संकट में थे और चारों तरफ से ज्ञान की वर्षा हो रही थी. वहां से लकड़ियों का बड़ा सा गठ्ठर सिर पर लादे दो लकड़हारे गुजर रहे थे. शोर सुनकर वे भी पहुंचे.
उन्होंने झटपट अपना गठ्ठर जमीन पर पटका उसकी रस्सियां खोलकर मजबूती से बांध दी. एक ने रस्सी का सिर पेड़ से बांधा और दलदल में उतरा. दूसरे साथी ने धीरे-धीरे रस्सी खींचीं और उस व्यक्ति की जान बचा ली.
सभी धर्मप्रचारक लकड़हारों के पास पहुंचे और उनके हिम्मत की प्रशंसा करने लगे. फिर उन्होंने पूछा– भाई आप दोनों किस धर्म या पंथ से हैं. आपके गुरू कौन हैं?
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