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तो हे राम, अब कोई दूसरा उपाय नहीं है.अब तो केवल सीता ही इसका वध करसकती हैं. आप उन्हें यहाँ बुला कर इसका वध करवाइये,इतना कहकर ब्रह्माजी चले गये. भगवान् श्रीराम ने हनुमानजी और गरुड़ को तुरन्त पुष्पक विमान से सीताजी को लाने भेजा
इधर सीता देवी-देवताओं की मनौती मनातीं, तुलसी, शिव-प्रतिमा, पीपल आदि के फेरे लगातीं, ब्राह्मणों से ‘पाठ, रुद्रीय’ का जप करातीं, दुर्गाजी की पूजा करती कि विजयी श्रीराम शीघ्र लौटें. तभी गरुड़ और हनुमान् जी उनके पास पहुँचे.
पति के संदेश को सुनकर सीता तुरन्त चल दीं. भगवान श्री राम ने उन्हें मूलकासुरके बारे में सारा कुछ बताया. फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया . उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था.
यह छाया सीता चंडी के वेश में लंका की ओर बढ चलीं . इधर श्रीराम ने वानर सेना को इशारा किया कि मूलकासुर जो तांत्रिक क्रियाएं कर रहा है उसको उसकी गुप्त गुफा में जा कर तहस नहस करें.
वानर गुफा के भीतर पहुंच कर उत्पात मचाने लगे तो मूलकासुर दांत किट्किटाता हुआ,सब छोड़छाड़ कर वानर सेना के पीछे दौड़ा. हड़बड़ी में उसका मुकुट गिर पड़ा. फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया.
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