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महिषासुर इसी तरह देवी के रूप की तारीफ करता हुआ अनाप शनाप बकता रहा तब देवी ने कहा, परम पुरुष परमात्मा के अलावा मैं किसी पुरुष के बारे में नहीं सोचती. तू स्त्री सुख के लिये इतना बेचैन क्यों है. मूर्ख, स्त्री का संग करने में महान कष्ट उठाना पड़ता है, लोहे की जंज़ीर से आज़ाद हो सकता है स्त्री बंधन से नहीं. क्या इतना भी नहीं जानता.

मां जगदंबा ने आगे कहा, सुखी होना चाहता है तो स्त्री सुख नहीं मन की शांति पाने का प्रयास कर. मेरे हाथों तेरा वध होगा यह तय है पर तेरी बातों ने मुझे खुश कर दिया है. इसलिये तुझे एक जीवन दान देते हुये कहती हूं कि चाहे तो देवताओं से बैर छोड़ कर पाताल भाग जा और वहां सुख से रह.

महिषासुर बोला, तुम कोमलअंगों वाली नारी हो, इतनी सुंदर स्त्री को मार देना मुझे शोभा नहीं देगा. मैं तो आज तुम्हें घर ले चलने के विचार से आया हूं, जबरन ले जाना नहीं चाहता. तुम अपने लिये बने सबसे बेहतरीन वर को ठुकरा रही हो. ऐसा न हो कि बाद में तुम्हें मंदोदरी की तरह पछताना पड़े जिसने योग्य वर नहीं स्वीकारे और बाद किसी मूर्ख की पत्नी बन दुःख झेलना पड़ा.

महिषासुर की इस बात पर मां अंबे ने कहा, यह मंदोदरी कौन थी जिसे राजा ने त्याग दिया और वह किस धूर्त नरेश से फिर ब्याही गयी तथा उसको कौन से दुःख झेलने पड़े, इस कथा का यहां क्या मतलब है, बताओ. देवी दुर्गा के यह कहने पर महिषासुर ने माता को राजकुमारी मंदोदरी की कहानी इस प्रकार सुनायी.

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