एक युवक को साधक बनने की इच्छा हुई. बहुत भटका. किसी ने बताया कि मठ में शामिल हो जाओ और साधना करो. वह सीधा एक मठ में पहुंचा और महंथ से कहा- मुझे साधक बना दें, वह भी जितना जल्द हो सके.

महंथजी हंसे. उन्होंने पूछा कि उसे जल्दी क्यों है. युवक बोला- मुझमें ऊर्जा है, उत्साह है. मैं जो काम एक दिन में कर सकता हूं उसे अधिक उम्र के कारण आपको तीन-चार दिन लग सकते हैं. कीमती समय व्यर्थ क्यों करना.

महंथजी ने प्रेम से समझाया- तुम्हारा उत्साह देखकर अच्छा लगा. तुम मन के सच्चे हो, कपट नहीं है. साधक के गुण तो हैं लेकिन कई खामियां इसमें बाधक हैं. साधना के लिए तुम तैयार नहीं हो. उसमें धैर्य और सहनशीलता की जरूरत है.

युवक मानने को तैयार नहीं था हालांकि महंथजी से मिली प्रशंसा के बाद उसे मन में कुछ अच्छे बदलाव महसूस हो रहे थे. उसकी जिद देखकर महंथजी ने कहा- यदि तुम गंगास्नान करके समय से आ गए तो मैं तुम्हें आज से ही शिक्षा देना शुरू करूंगा.

उत्साह से नदी की ओर दौड़ा. शीघ्रता से नहाया और भागा मठ की ओर लेकिन मठ में घुसा ही था कि वहां झाड़ू लगाने वाले ने धूल उड़ा दी. उसे बड़ा क्रोध आया और सफाई वाले को मारने दौड़ा. जान बचाने के लिए वह सफाई का काम छोड भागा.

वह फिर से स्नान करके आय़ा. इस बार बचता हुआ चल रहा था पर भूल से उस सफाई वाले से थोड़ा स्पर्श हो गया. उसने सफाई वाले को खूब गालियां दी और महंथजी के पास पहुंचा. महंथजी ने फिर से शुद्ध होकर आने को कहा.

वह फिर से नहाने गया. लौटा तो मठ के द्वार पर ही उस सफाई वाले ने कूड़े से भरी एक टोकरी उसकी ओर उछाल दी. ऊपर से नीचे तक कूड़े में सना था. पर इस बार वह शांत रहा. उसने आंखें बंद कर ली.

फिर वह सफाई वाले के पास गया और बोला- आपका बहुत आभारी हूं. आपके कारण मुझे समझ में आया कि मैं स्नान से शरीर की सफाई कर रहा था. मन में क्रोध तो पहले से भी ज्यादा है. मुझे इस पर नियंत्रण की कला सीखनी होगी.

वह युवक फिर से स्नान के लिए मुड़ा. महंथजी तो यह सब देख ही रहे थे. उन्होंने उसे बुलवाया और कहा- तुम्हारा हृदय परिवर्तन के लिए तैयार है अब. मन के शुद्धिकरण की प्रक्रिया आरंभ हो गई है. तुम हर साधना के लिए तैयार हो.

कितनी बड़ी बात है. जिसने मन को साध लिया उसके लिए कोई साधना कितनी मुश्किल रहेगी. जो सबसे ज्यादा चंचल रखता है. सभी विकारों का कारण है उस पर ही नियंत्रण हो जाए तो फिर किसी नियंत्रण की क्या आवश्यकता.

स्वयं विचार कीजिए. अपनी सबसे ताजा-ताजा समस्या के लिए. क्या अगर आपने मन को कुछ देर के लिए वश में कर लिया होता, क्रोध, लोभ और मोह छोड़ दिया होता तो वह समस्या टाली जा सकती थी.

उत्तर यदि हां में है तो आप परिवर्तन के लिए तैयार हैं और जल्द ही समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं. आप स्वयं को पहचानने लगे हैं, मुश्किलों का हल निकालने लगेंगे. अपने अंतर्मन से बड़ा कोई मार्गदर्शक नहीं हो सकता.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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