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पहले भाग में आपने पढ़ा- संतानहीन आत्मदेव को संतान के लिए ब्राह्मण ने एक दिव्य फल दिया लेकिन उसकी दुष्ट पत्नी ने उसे गाय को खिला दिया और अपनी बहन के बेटे धुंधुकारी को अपना बेटा बताकर रख लिया.

गाय से तेजस्वी बालकर गोकर्ण का जन्म हुआ. आत्मदेव ने उसे भी पुत्र की तरह पाला. धुंधुकारी कुसंगति में पड़कर सभी अनैतिक कर्म करने लगा. इस दुख से आत्मदेव की मृत्यु हो गई. अब आगे-

आत्मदेव के निधन के बाद धुंधुकारी पहले से ज्यादा उन्मुक्त और स्वतंत्र हो गया. उसके उपद्रव तथा धन के लिए प्रताड़ित करने से दुखी धुंधुली ने कुंए में कूदकर प्राण त्याग दिए.

माता-पिता नहीं रहे तो गोकर्ण भी तीर्थयात्रा पर निकल गया. परम स्वतंत्र धुंधुकारी अब सदा वेश्याओं के साथ विलास में डूबा रहता था. व्यभिचार और कुकर्मों से उसकी बुद्धि नष्ट हो गई.

वेश्याएं धुंधुकारी से ज्यादा से ज्यादा धन लूटने लगीं. उवनकी इच्छाएं पूरी करने के लिए एक बार धुंधुकारी ने राजमहल में बड़ी चोरी की.

राजकोष का धन और आभूषण देखकर वेश्याओं ने सोचा कि यदि चोरी का भेद खुल गया तो राजा के सिपाही धुंधुकारी के साथ-साथ उन्हें भी कारागर में डाल देंगे.

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