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राजा ने सबको सर्तक किया कि कोई उस ओर ध्यान न दे क्योकि तुम सब भगवान से मिलने जा रहे हो. इन तांबे के सिक्कों के पिछे अपने भाग्य को लात मत मारो. पर लोभ में वशीभूत कुछ लोग तांबे के सिक्कों वाली पहाडी की ओर चले ही गए.

उन्होंने तांबे के सिक्कों की गठरी बनाई और अपने घर की ओर चलने लगे. वे मन ही मन सोच रहे थे कि पहले इन सिक्कों को समेटकर घर में पहुंचा दें, भगवान से तो फिर कभी मिल लेंगे.

राजा खिन्न मन से आगे बढे. कुछ दूर चलने पर चांदी के सिक्कों का चमचमाता पहाड दिखाई दिया. प्रजा में से कुछ लोग चांदी की ओर लपके. जितनी चांदी बटोर सकते थे, बटोरी और अपने घर की ओर भागे.

उनके मन में भी वही विचार चल रहा था कि ऐसा मैका बार-बार तो नहीं मिलता है. राजा कभी भी अपने भगवान से कहेंगे और वह दर्शन दे देंगे. इतनी चांदी फिर मिले न मिले, भगवान तो फिर कभी मिल जायेगें.

कुछ आगे लने पर सोने के सिक्कों का ढेर नजर आया. अब तो उन लोगों का धैर्य भी जवाब दे गया जो तांबे और चांदी के पीछे नहीं भागे थे. बची हुई प्रजाजन के साथ-साथ राजा के स्वजन भी लपके. सिक्कों की गठरी लादी और घर को ओर चल दिये.

अब वहां पर केवल राजा और रानी ही शेष रह गये थे. राजा रानी से कहने लगा- देखो कितने लोभी हैं ये लोग. भगवान से मिलने का महत्व ही नहीं जानते हैं. भगवान के सामने सारी दुनिया की दौलत क्या चीज है!
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