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सन्त बोले- सुनो, यदि मेरे मन में तुमसे मिलने का विचार आता तो कई अड़चनें आतीं और बहुत देर भी लगती. मैं आता, तुम्हारे दरबारियों को सूचित करता. वे तुम तक संदेश लेकर जाते.

तुम यदि फुर्सत में होते तो हम मिल पाते और कोई जरूरी नहीं था कि हमारा मिलना सम्भव भी होता या नहीं.

परंतु जब तुम्हारे मन में मुझसे मिलने का विचार इतना प्रबल रूप से आया तो सोचो कितनी देर लगी मिलने में?

तुमने मुझे अपने सामने प्रस्तुत कर देने के पूरे प्रयास किए. इसका परिणाम यह रहा कि घड़ी भर से भी समय में तुमने मुझे प्राप्त कर लिया.

हे राजन्! इसी प्रकार यदि भगवान्‌ के मन में विचार आ जाए कि आज मैं भक्त से मिलकर आता हूं तो फिर उनके लिए इस कार्य में देर कितनी लगेगी.

वह तो पलक झपकने से भी कम समय में संसार के किसी कोने में उपस्थित हो सकते हैं. तो हम भगवान को खोजें उससे उचित नहीं कि भगवान ही हम खोजते आ जाएं.

राजा यह सुनकर विस्मय में पड़ गया. भगवान क्यों खोजने आने लगे मनुष्य को! ऐसा भी कहीं होता है भला! लगता है संत महाराज आज आपे में नहीं है. फिर भी राजा ने धैर्य नहीं छोड़ा और प्रश्न किया.

राजा ने पूछा- परंतु भगवान्‌ के मन में हमसे मिलने का विचार आए तो कैसे आए और क्यों आए ?

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