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राजा की नजदीकी और राजकार्य भी उन्हें अपने आराध्य से दूर नहीं कर पाया. ईश्वर की कृपा और राजा के स्नेह से सौभाग्य और समृद्धि सदैव साथ रहने लगी.

पर खास बात यह थी कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान विद्यापति के साथ उनका सेवक “उगना” छाया की तरह साथ में था.

इससे विद्यापति का जीवन बदल गया था. पंडितानी बेहद प्रसन्न रहती थीं लेकिन कोई और इस पूरे घटनाक्रम से उतना खुश नहीं था. शिवप्रिया महामाया जगदंबा स्वयं भी विद्यापति की भक्ति के प्रभावित तो थीं और महादेव के उनके पास जाने में उनकी भी सहमति थी लेकिन ज्यादा लंबे समय के लिए नहीं.

हालांकि पृथ्वी के प्राणियों के लिए जो काल वर्षों का होता है, वही समय देवताओं के लिए मात्र कुछ क्षणों के होते हैं.

जगदंबा के लिए महादेव का इतना थोड़ा विछोह भी असह्य था. माता ने सोचा कि अब तो विद्यापति के पास सब कुछ है- धन संपत्ति, राजा का स्नेह, यश, कीर्ति, कालजयी रचनाएं. अब तो महादेव को उनके पास लौट ही आना चाहिए.

सदाशिव तो विद्यापति की भक्ति के रस में इतने लीन थे कि उन्हें लौटने का तो ध्यान ही नहीं रहा.

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