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प्रह्लाद के वंश में दुर्गम नामक एक भयानक, क्रूर और पराक्रमी दैत्य हुआ. नाम के अनुरूप बलशाली दुर्गम जब अट्टाहास करता तो उसके शरीर से प्रचंड अग्नि निकलती थी.
उसे देवताओं की शक्ति से बड़ी ईर्ष्या थी. वह देवताओं की सेना को पराजित करने के लिए तरह-तरह के यत्न करता परंतु सफल नहीं हुआ. दुर्गम को पता चला कि देवता वेदों के कारण अपराजेय हो गए हैं.
देवताओं को वैदिक विधियों से होने वाली आराधना से अतुल्य बल मिल जाता है. दुर्गम समझ गया कि वेदों के कारण देवों की शक्ति क्षीण नहीं होती. तो यदि वेदों को लुप्त या समाप्त कर दिया जाए तो देवता शक्तिहीन होकर पराजित हो जाएंगे.
अतः दुर्गम ने सोचा कि क्यों न वेदों को ही समाप्त कर दिया जाए. इस विचार से दुर्गम हिमालय पर चला गया और ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए उसने कठोर तप आरम्भ कर दिया.
हजारों साल की दुर्गम के घोर तप के तेज से देवता भी संतप्त हो उठे. तीनों लोकों में हाहाकार मच गया. अंततः ब्रह्माजी दुर्गम के सामने प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा.
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