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एक बार भगवान बुद्ध ने किसी स्थानपर डेरा डाला था. बुद्ध के साथ उनके बहुत से शिष्य भी साथ चलते थे. एक दिन बुद्ध के शिष्यों के बीच समस्याओं के कारण और उसके समाधान के विषय पर चर्चा चल रही थी.
सभी अपने-अपने तर्क दे रहे थे लेकिन किसी एक बात पर सभी की सहमति बन नहीं पा रही थी. अंततः निर्णय हुआ कि इस प्रश्न को भगवन् के समक्ष रखा जाए. वही इसका सही समाधान करेंगे.
बुद्ध ने सबके तर्क को बड़े इत्मिनान से सुना. उनकी बातें सुनते-सुनते ही बुद्ध ने एक रस्सी में गांठें लगाईं. फिर शिष्यों से पूछा- बोले क्या अब भी यह वही रस्सी है, जो कुछ समय पहले थी?
एक शिष्य ने जवाब दिया- भगवन् यह तो हमारे देखने के तरीके पर निर्भर है. एक नजरिए से देखें तो यह वही रस्सी दिखाई पड़ती है लेकिन दूसरी तरह से देखें तो अब यह बदल गई है. फिर भी इसमें लगी गाठों के बावजूद इसका बुनियादी स्वरूप तो वही है.
बुद्ध ने अन्य शिष्यों का विचार समझने के लिए उनकी तरफ देखा. सभी मौन ही रहे लेकिन बुद्ध ने उनके मन का भाव पढ़ा. वे अपने साथी के विचारों के साथ संतुष्ट और सहमत ही नजर आए.
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