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सूर्यवर्चा की बात सुनकर ब्रह्माजी बोले- “नादान! मैं तेरा पराक्रम जानता हूँ. तुमने अभिमानवश इस देवसभा को चुनौती दी है. स्वयं को विष्णुजी के बराबर समझने की भूल करने वाले अज्ञानी! तुम इस देवसभा के योग्य नहीं हो. तुम अभी पृथ्वी पर जा गिरो. राक्षसकुल में जन्म लो. युद्ध के लिए आतुर यक्ष! पृथ्वी पर एक धर्मयुद्ध के आरंभ के ठीक पहले स्वयं भगवान विष्णु तुम्हारा सिर काटेंगे. राक्षस रूप में तुम उस युद्ध से वंचित रह जाओगे.

सूर्यवर्चा ब्रह्माजी के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा. ब्रह्माजी का क्रोध शांत हुआ. वह बोले- “वत्स! तूने अभिमानवश देवसभा का अपमान किया है, इसलिए मैं शाप वापस नहीं ले सकता. लेकिन इसमें कुछ संसोधन अवश्य कर सकता हूँ. भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से तुम्हारा शीश काटेंगे. उसके बाद देवियां तुम्हारे शीश का अमृत से अभिसिंचन करेगी. जिससे तुम देवताओं के समान पूज्य हो जाओगे.”

तत्पश्चात भगवान श्रीहरि ने भी इस प्रकार यक्षराज सूर्यवर्चा से कहा- हे वीर! तुम्हारे शीश की पूजा होगी और मेरे आशीर्वाद से तुम देवरूप में पूजित होगे. अभिशाप को वरदान में बदलता देख सूर्यवर्चा प्रसन्न मन से उस देवसभा से अदृश्य हो गए. भगवान विष्णु ने पृथ्वी के उद्धार के लिए श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेकर मूर दैत्य का वध किया और मुरारी कहलाए.

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