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प्रभु ने मन की बात भांप ली. उन्होंने पृथ्वी को आदेश दिया कि वह उनके बगल में हनुमानजी के बैठने भर भूमि बढ़ा दें. प्रभु ने स्थान तो बना दिया पर एक और केले का पत्ता नहीं बनाया.
श्रीराम हनुमानजी से बोले- आप मुझे पुत्र समान प्रिय हैं. आप मेरी ही थाली (केले का पत्ता) में भोजन करें.
इस पर श्री हनुमान जी बोले- प्रभु मुझे कभी भी आपके बराबर होने की अभिलाषा नहीं रही. जो सुख सेवक बनकर मिलता है वह बराबरी में नहीं मिलेगा.
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Very nice
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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