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हनुमानजी अगुआ बने. भोज के दिन हनुमानजी सबके बैठने आदि का इंतज़ाम देख रहे थे. व्यवस्था सुचारू बनाने के बाद वह श्रीराम के पास पहुंचे.
श्रीराम ने हनुमानजी को आत्मीयता से कहा कि हनुमानजी आप भी मेरे साथ बैठकर भोजन करें.
एक तरफ तो प्रभु की इच्छा थी. दूसरी तरफ यह विचार कि अयोध्या में वानर जाति को शुभ नहीं मानते. इसलिए संग भोजन करने से कहीं प्रभु के मान की हानि न हो.
हनुमानजी धर्मसंकट में पड़ गए. वह अपने प्रभु के बराबर बैठना नहीं चाहते थे. प्रभु के भोजन के उपरांत ही वह प्रसाद ग्रहण करना चाहते थे.
इसके अलावा बैठने का कोई स्थान शेष नहीं बचा था और न ही भोजन के लिए थाली के रूप में प्रयुक्त केले का पत्ता बचा था जिसमें भोजन परोसा जाए.
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आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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