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तदनन्तर यमराज के दूत उस मरे हुए प्राणी को पहले यमपुरी में ले गये । वहाँ यह विचारकर कि यह वेश्या के दिये हुए पुण्य से पुण्यवान हो गया है, उसे छोड़ दिया गया फिर वह भूलोक में आकर उत्तम कुल और शील वाले ब्राह्मणों के घर में उत्पन्न हुआ । उस समय भी उसे अपने पूर्वजन्म की बातों का स्मरण बना रहा ।

बहुत दिनों के बाद अपने अज्ञान को दूर करने वाले कल्याण-तत्त्व का जिज्ञासु होकर वह उस वेश्या के पास गया और उसके दान की बात बतलाते हुए उसने पूछाः ‘तुमने कौन सा पुण्य दान किया था?’ वेश्या ने उत्तर दियाः ‘वह पिंजरे में बैठा हुआ तोता प्रतिदिन कुछ पढ़ता है । उससे मेरा अन्तःकरण पवित्र हो गया है । उसी का पुण्य मैंने तुम्हारे लिए दान किया था ।’ इसके बाद उन दोनों ने तोते से पूछा । तब उस तोते ने अपने पूर्वजन्म का स्मरण करके प्राचीन इतिहास कहना आरम्भ किया ।

शुक बोलाः पूर्वजन्म में मैं विद्वान होकर भी विद्वता के अभिमान से मोहित रहता था । मेरा राग-द्वेष इतना बढ़ गया था कि मैं गुणवान विद्वानों के प्रति भी ईर्ष्या भाव रखने लगा । फिर समयानुसार मेरी मृत्यु हो गयी और मैं अनेकों घृणित लोकों में भटकता फिरा । उसके बाद इस लोक में आया । सदगुरु की अत्यन्त निन्दा करने के कारण तोते के कुल में मेरा जन्म हुआ । पापी होने के कारण छोटी अवस्था में ही मेरा माता-पिता से वियोग हो गया ।

एक दिन मैं ग्रीष्म ऋतु में तपे मार्ग पर पड़ा था । वहाँ से कुछ श्रेष्ठ मुनि मुझे उठा लाये और महात्माओं के आश्रय में आश्रम के भीतर एक पिंजरे में उन्होंने मुझे डाल दिया । वहीं मुझे पढ़ाया गया । ऋषियों के बालक बड़े आदर के साथ गीता के प्रथम अध्याय की आवृत्ति करते थे । उन्हीं से सुनकर मैं भी बारंबार पाठ करने लगा ।

इसी बीच में एक चोरी करने वाले बहेलिये ने मुझे वहाँ से चुरा लिया । तत्पश्चात् इस देवी ने मुझे खरीद लिया । पूर्वकाल में मैंने इस प्रथम अध्याय का अभ्यास किया था, जिससे मैंने अपने पापों को दूर किया है । फिर उसी से इस वेश्या का भी अन्तःकरण शुद्ध हुआ है और उसी के पुण्य से ये द्विजश्रेष्ठ सुशर्मा भी पापमुक्त हुए हैं ।

इस प्रकार परस्पर वार्तालाप और गीता के प्रथम अध्याय के माहात्म्य की प्रशंसा करके वे तीनों निरन्तर अपने-अपने घर पर गीता का अभ्यास करने लगे, फिर ज्ञान प्राप्त करके वे मुक्त हो गये ।इसलिए जो गीता के प्रथम अध्याय को पढ़ता, सुनता तथा अभ्यास करता है, उसे इस भवसागर को पार करने में कोई कठिनाई नहीं होती ।
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