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मेघनाद को बांधकर वे महाराज दशरथ के पास ले गए. दशरथजी ने मेघनाद से परिचय पूछा फिर कमलपुष्प की चोरी का पूरा वृतांत व कारण जाना.
महाराजा दशरथ बोले- निःसंदेह इसने बिना अनुमति वाटिका में प्रवेशकर अपराध किया है परंतु यह पितृभक्ति के भाव में था इसलिए इससे यह घृष्टता हो गई और अनुमति लेना भूल गया.
यह भगवान शिव को अर्पित करने के लिए पुष्प की याचना करने आता तो हम इसे सम्मान के साथ सहर्ष प्रदान करते, फिर भी यह अपने पिता को दुखी देकखर व्याकुल था. पिता की सेवा में निकले इसके प्राण मत लो. इसे पुष्प देकर छोड दो.
लक्ष्मणजी ने मेघनाद को बंधन मुक्त कर दिया और उसे उपवन में से कमलपुष्प भी दिए.
जब मेघनाद ने लंकायुद्ध में लक्ष्मणजी पर शक्ति का प्रहारकर विकट स्थिति पैदा कर दी, तब श्रीरामजी भाई के शोक में विलाप करते हुए स्मरण करने लगे.
दुखी हृदय से पिताजी की आज्ञा का स्मरण करते हुए श्रीराम ने कहा कि यदि मैं जानता कि यह मेघनाद मेरे भाई लखन के प्राणों के संकट का कारण बनेगा तो मैं उस समय पिताजी के वचन न मानता और लक्ष्मण को इसके प्राण लेने देता.
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