देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले पुत्र की इच्छा ले मां पार्वती ने पुष्पक व्रत किया, समापन पर विशाल यज्ञ भी, भगवान विष्णु द्वारा मन को खुश कर देने वाला मनचाहा आशीर्वाद भी मिल गया.

पर सब होने के बावजूद फल पाने में यज्ञ की दक्षिणा देनी ही सबसे बड़ी अड़चन बन गयी. शिवजी के कहने पर आखिर पार्वतीजी ने पुरोहित सनत कुमार को दक्षिणा स्वरूप महादेव को देना पड़ा.

यज्ञ में आये सब देवतागण यह देख चकित थे. तभी उससे भी अधिक आश्चर्यजनक घटना घटी. अनेक सूर्यों की चमक को मात देने वाला एक दिव्य प्रकाश पुंज वहां प्रकट हुआ. उसके भीतर से श्रीकृष्ण अपने दिव्य रूप में प्रकट हुए.

भगवान श्रीकृष्ण के उस दिव्य स्वरूप के दर्शन करके सनत कुमार इतने प्रसन्न हो गए कि प्रसन्नतापूर्वक उन्होंने पार्वतीजी से कहा- हे भगवती! अब मैं दक्षिणा नहीं चाहता. मैं जो चाहता था वह मुझे मिल गया.

श्रीकृष्ण के जय जयकारों से सारा यज्ञमंडप गूंज उठा. श्रीकृष्ण के दर्शन के बाद एक एक कर सभी देवता वहां से चले गए. स्थिति सामान्य और शांत हो गयी तो थोड़ी ही देर बाद वहाँ ब्राह्मण आया.

ब्राह्मण माता पार्वती के पास आकर बोला- मां, मैं भूखा हूं. लगता है आपने कोई यज्ञ कराया है. मुझे प्रसाद दो, अन्न दो. पार्वतीजी ने ढेर सारी मिठाई लाकर उस ब्राह्मण को दे दिया. ब्राह्मण उस थाल भर मिठाई को मिनटों में चट कर गया.

मां पार्वती ने और मिठाई दे दी. चंद मिनटों में ही दूसरी थाल समाप्त कर द्विज ने फिर पूछा- मां, मेरी भूख नहीं मिटी. थोड़ा और खाने को दो. वह ब्राह्मण मांगता रहा, पार्वती जी कुछ-न-कुछ खिलाती रहीं.

वह फिर भी संतुष्ट न हुआ. हर बार कुछ और मांगता रहा. पार्वती जी की आखिर कब तक सहतीं. वह खीझ उठीं. झल्लाते हुए शिवजी से शिकायती स्वर में बोलीं- देव, न मालूम यह कैसा मांगने वाला, खाऊ ब्राह्मण है. ओह, कितना खिलाया पर हर बार और मांगता है.

इतनी थाल मिठाइयों और फलों की उसे दे चुकी हूं पर जब जाती हूं वह कहता है कि उसका पेट नहीं भरा. खिलाने की भी एक सीमा है. मैं और कहां से लाकर खिला सकती हूं. इसे खिलाने के चक्कर में श्रीकृष्ण कब चले गए पता ही नहीं चला.

शिवजी को उस मंगते ब्राह्मण की इस हरकत पर बहुत आश्चर्य हुआ. उसे देखने के लिए पहुंचे. पर वहां तो कोई खाऊ ब्राह्मण न था. पार्वती चकित होकर बोलीं- अभी तो यहीं था, न मालूम कैसे कहां अदृश्य हो गया.

शिवजी चुप रहे. उन्होंने एक क्षण को ध्यान लगाया फिर हंसकर बोले- देवि, वह कहीं नहीं गया. वह यहीं है, तुम्हारे पेट में. वह कोई पराया नहीं, अपना ही है. साक्षात् तुम्हारा ही पुत्र गणेश है. यज्ञ पूरा होते ही तुम्हारी मनोकामना भी पूरी हो गई है.

बाद में भगवान शिव के अनुग्रह से ही गणेशजी जन्म धारण किया और गणाधिपति बन गए, समस्त विश्व के संकट दूर करते हुए विघ्नेश्वर कहलाए और सबसे पहले पूजे जाने वाले भी बने.

मित्रों, कुछ हिन्दू धर्मशास्त्रों में श्रीगणेश को भगवान श्रीकृष्ण का ही अवतार बताया गया है. भगवान विष्णु शिवजी की आराधना करते थे. उनका मन भी शिवजी के सान्निध्य में ही लगता था. इसलिए श्रीहरि ने पुत्ररूप में ही अवतार ले लिया.

ब्रह्मवैर्वत पुराण की इस कथा में भगवान श्री कृष्ण का आना और फिर सनत कुमार सहित सभी देवताओं दर्शन देकर चले जाना और फिर तत्काल ही एक भूखे ब्राह्मण का पहुंचना जो वास्तव में गणेश ही होते हैं. इसी ओर इशारा करता है.

सत्य क्या है और असत्य क्या है. यह तो प्रभु की माया प्रभु ही जानें. प्रभु शरणम् का उद्देश्य है आपको धर्मग्रंथों से जोड़े रखना. उसकी वह कथाएं भी आप तक पहुंचाना जो कम प्रचारित हुई हैं.

कथा आगे बढती है. इसके कुछ काल के बाद एक दिन मां पार्वती के सामने एक बहुत ही सुन्दर बालक प्रकट हुआ. उस बालक की सुंदरता की चर्चा देवलोक में इस तरह से फैली कि सभी देवता, ऋषि-मुनि, गंधर्व आदि वहां उसे देखने आए.

माता पार्वती ने एक भव्य जन्मसंस्कार का आयोजन किया. उसमें शिवजी के शिष्य शनिदेव को भी बुलाया. शनि को एक पत्नी की ओर से शाप मिला था कि वह जिस पर दृष्टि डालेंगे उसका मस्तक धड़ से अलग हो जाएगा.

इस कारण वह किसी पर दृष्टि न डालते थे. बस अपनी नजरें नीची किए रहते थे. माता पार्वती ने उनसे कारण पूछा तो शनिदेव ने बता दिया लेकिन उमंग में डूबी माता ने शाप की अनदेखी कर दी और गणेशजी को शनि की गोद में डाल दिया.

शनिदेव की बालक गणेश पर दृष्टि पड़ी तो उनका सिर कट गया. यह देखते ही शनिदेव समेत जो भी वहां उपस्थित थे सभी अनिष्ट की आशंका से भयभीत हो गए. किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था.

पार्वतीजी क्रोधित हो गईं लेकिन शनिदेव ने तो पहले ही बता दिया था. तब भगवान विष्णु ने उपाय निकाला और एक हाथी के बच्चे का मस्तक काटकर उसे श्रीगणेश से जोड़ दिया. तब से गणेश गजानन कहलाए.

हाथी का मस्तक जोड़े जाने और शनिदेव की पत्नी द्वारा शाप की कथाएं भी ब्रह्मवैवर्त पुराण में आती हैं. अभी विस्तार से सुनाएंगे.

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

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