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उस नवागत पुरुष का तेज ऐसा था कि इंद्र उसे सहन न कर पाए और तुरन्त ही अपने मणिमय सिंहासन से नीचे गिर पड़े. इन्द्र सिंहासन से गिर गए तो सेवकों ने देवलोक के साम्राज्य का मुकुट उस नवआगंतुक के सिर पर रख दिया.
नवागंतुक नए इंद्र के रूप में स्थापित हो गए. देवांगनाओं और उनके साथ सभी देवताओं ने उनकी आरती उतारी। ऋषियों ने वेदमंत्रों का उच्चारण करके उन्हें अनेक आशीर्वाद दिये। गन्धर्वों ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए सुंदर स्वर में मंगलमय गान गाना शुरू किया।
इंद्र सोचने लगे कि इस नवीन इन्द्र को जो सम्मान मिल रहा है उसके लिए तो सौ यज्ञों का अनुष्ठान करना होता है परंतु बिना ऐसे यज्ञों का अनुष्ठान किए यह गौरव कैसे प्राप्त हो रहा है. आखिर बात क्या है.
इसने तो मार्ग में न कभी प्याऊ बनवाये हैं, न पोखरे खुदवाये है और न पथिकों को विश्राम देने वाले बड़े-बड़े वृक्ष ही लगवाये हैं। अकाल पड़ने पर अन्न दान के द्वारा इसने प्राणियों का सत्कार भी नहीं किया है।
इसके द्वारा तीर्थों में सत्र और गाँवों में यज्ञ का अनुष्ठान भी नहीं हुआ है। फिर इसने यहाँ भाग्य की दी हुई ये सारी वस्तुएँ कैसे प्राप्त की हैं? इस चिन्ता से व्याकुल होकर इन्द्र भगवान विष्णु के पास अपनी शंका का समाधान पूछने के लिए चल पड़े.
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Amarkatha konsi he jo Mahadev ne mata Parvati ko sunai thi, amarnath gufa me
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