पिछली कथा से आगे….
सहस्त्रबाहु के बेटों ने जमदग्नि के आश्रम में भारी रक्तपात किया और फिर जमदग्नि का शीश काटकर अपने साथ ले गए. परशुराम तो महेंद्र पर्वत पर तप कर रहे थे. उनके अन्य भाइयों को बुलाया गया.
जमदग्नि के बेटे आये. पिता का शीशविहीन शव देखकर पछाड़ खाकर गिर गये. मां रेणुका ने यह सब सुना तो अचेत हो गयीं. आश्रम में उपस्थित लोग भी रोने लगे, हर और शोक था.
मुनियों ने जमदग्नि के पुत्रों और उनकी मां रेणुका को ढांढस बंधने और संभालने का प्रयास किया. उधर परशुराम का तप पूरा हो चुका था. वह अकृतव्रण के साथ महेंद्र पर्वत से चल पड़े थे.
मुनिमंडल से परशुराम को सारी जानकारी मिल गयी. वे बेहद क्रुद्ध, दुःखी और उदास हो गये. पिता की दुर्दशा की सुनकर कर परशुराम भी विलाप करने लगे. अकृतव्रण न उन्हें बहुत से उदाहरण, उद्धरण देकर समझाया बुझाया.
पति के शोक में रेणुका भी चल बसीं. मां-पिता दोनों को खो देने वाले परशुराम के भाइयों को मुनियों ने समझाया कि परशुराम के आने में विलंब है. आप मां पिता का दाह-संस्कार और अन्य संस्कार भी पूरा करें. उन्होंने ऐसा ही किया.
कुछ दिनों बाद परशुराम पहुंचे. उन्हें सब पता था पर भाइयों ने सारी बात विस्तार से बताई. सहस्रबाहु के बेटों ने निरपराध मुनियों को और पिता को मारा और मां रेणुका ने मरने से पहले किस तरह 21 बार छाती पीटकर परशुराम को पुकारा.
परशुराम आश्रम में तीन दिन रहे और हर दिन कार्तवीर्य के बेटों का कारनामा सुनकर उनका क्रोध और भी चढता जाता. तीसरे दिन परशुराम के क्रोध का पारावार न रहा तो उन्होंने यह प्रण किया कि वे सहस्रार्जुन के सभी पुत्रों को मार डालेंगे.
उन सभी के खून से माता पिता को तर्पण अर्पण करेंगे और साथ ही माता ने 21 बार छाती पीटी है इसलिए धरती से 21 बार हैहयवंशीयों का समूल संहार करेंगे. यह कहकर वह आश्रम से निकलने को तैयार हुये.
जमदग्नि जैसे तपस्वी के वध से ऋषियों में भी आक्रोश था. देवताओं ने भी एक ऋषि के इस नृशंसता से हुए वध के कारणों हैहयों पर से अपनी कृपा हटा ली.
परशुराम ने सबसे पहले महोदर गणेश का ध्यान किया. श्रीगणेशजी ने तत्काल दिव्य धनुष, उत्तम तीर तुणीर, चाप और दूसरे अश्त्र-शस्त्र के साथ घोड़े रथ आदि भेज दिए.
अब परशुराम ने अपने गुरु अगस्त्य को याद किया. गुरु अगस्त्य ने भी कई तरह के दिव्य हथियार भेज दिए. एक शानदार रथ भी दिया. सहसय उनके सारथी बने.
भगवान शंकर से मिले अभित्रजित शंख को फूंक रथ पर चढ अकृतव्रण के साथ कार्तवीर्य के बेटों का हनन और क्षत्रियों का संहार करने महिष्मती नगर की और कूच कर गये.
उधर कार्तवीर्य के बेटों को परशुराम के आने की खबर मिली और आशंकित हमले की भी तो उन्होंने कई क्षत्रिय राजाओं को अपने साथ परशुराम के खिलाफ मोर्चा बनाने के लिये बुला लिया. कई राजा अपने दल-बल के साथ जुट गये.
परशुराम महिष्मती नगरी पहुंचे. पहले तो भीषण रण हुआ. सहस्रार्जुन के बेटे वीरता से लड़े, पर परशुराम के आगे किसी क न चली. परशुराम के दिव्यास्त्रों से महिष्मती में आग लग गयी.
पूरी महिष्मती जलकर खाक हो गयी. लगभग सभी क्षत्रिय राजा निबट गये. हैहेय वंश में से केवल वीतिहोत्र बचकर निकल सका. वह रनिवास में जा कर स्त्रियों के बीच छिप गया और आग लगने पर भाग गया.
हैहेय विनाश के बाद परशुराम ने कार्तवीर्य सहास्रार्जुन की पूरी संतति समाप्त कर दी. साथ ही इस पूरे प्रकरण में ढेरों अन्य क्षत्रिय भी मारे गये. भारी रक्तपात के बाद परशुराम मानसिक शांति के लिये एक बार फिर महेंद्र पर्वत पर चले गये.
परशुराम ने प्रतिज्ञा की कि वे महेद्र पर्वत पर दस साल तपस्या करेंगे. पर परशुराम की यह प्रतिज्ञा इससे बड़ी नहीं थी कि वे अपनी माता को दिया 21 बार क्षत्रियों का समूल संहार करेंगे और उनके रक्त से अपने माता पिता का तर्पण करेंगे.
परशुराम क्षत्रिय विनाश के लिये जल्द ही लौटे. अगली कथा में परशुराम के महेंद्र पर्वत से लौटकर किए भीषण रक्तपात और फिर रक्त के तालाब में स्नान के बाद तर्पण का प्रसंग.
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश