भगवान शिव से प्राप्त दिव्य परशु और अकृतव्रण जैसे परम अज्ञाकारी शिष्य को साथ लेकर राम अपने घर पहुंचे तो उनकी खूब आवभगत हुई. सभी भाइयों सहित पूरे परिवार ने राम की तपश्चर्या और अन्य आपबीती बहुत रुचि से सुनी.
यही वह समय था जब हैहेय राज कार्तवीर्य अर्जुन शिकार पर निकला था. उसके साथ न केवल हाथी घोड़ों वाली भारी सेना थी बल्कि उसके मंत्री, पुरोहित और तमाम साथी संगी भी थे.
अंधाधुंध शिकार के बाद कार्तवीर्य की सारी सेना भूख प्यास से व्याकुल हो बुरी तरह थक गयी तो सबने नर्मदा के शीतल जल में प्रवेश कर जलक्रीड़ा, स्नान फिर भोजन और विश्राम किया. फिर शाम होते ही नगर की ओर वापस चला.
उन्हें एक सुंदर आश्रम दिखाई दिया. यह जमदग्नि का आश्रम था. कार्तवीर्य ने निकट ही डेरा डाला और स्वयं आश्रम में जाकर जमदग्नि से आशीर्वाद लिया. फिर कार्तवीर्य ने अपने नगर वापस जाने के लिये आज्ञा मांगी.
कार्तवीर्य ने कहा- हे मुनिवर मेरे साथ भारी फौज है. आश्रम इतने लोगों का आतिथ्य सत्कार नहीं कर पाएगा. अगर आप तपोबल से कुछ प्रबंध कर भी दें तो भी सैनिक स्वभाव से उद्दंड़ हैं. आश्रम में लाना ठीक नहीं. अत: मैं प्रस्थान की आज्ञा चाहूंगा.
जमदग्नि बोले- आप समस्त प्रजा का कुशलता से पालन कर रहे हैं. आप जैसे राजा को निराहार भेजना उचित नहीं. आप कुछ समय दें. मैं आपके और आपके सभी साथियों सैनिकों के आतिथ्य का प्रबंध पल भर में कर देता हूं. आप चिंता न करें.
जमदग्नि ने एक गौ माता को बुलाकर कहा- आप आज सभी आतिथ्यों के भरण-पोषण का प्रबंध करें गोमाता. जमदग्नि ने एक शिष्य को बुलाकर राजा और उनके साथियों को आश्रम दिखाने के लिए भेज दिया.
इस बीच ऋषि के आदेश पर धेनु ने तत्काल एक वैभव संपन्न नगर कर निर्माण कर दिया. कार्तवीर्य चक्रवर्ती राजा होकर भी आश्रम में सोने, रत्नों और दूसरी बहुमूल्य वस्तुओं का वैभव देख देखते रह गये.
शिष्यों ने राजा की सेना को बताया कि राजा ने ऋषि का आतिथ्य स्वीकारा है. आप कृपया इस नगर में प्रवेश कीजिये. राजा समेत पूरी सेना का उस नगर में भव्य स्वागत हुआ जिसे गौमाता ने बनाया था.
वहां की छटा और धन सम्पदा देख राज को भी कहना पड़ा कि धरती पर किसी क्षत्रिय राजा के सास इसका सौंवा अंश भी न होगा. राजा को वह सब कुछ वहां खाने और बरतने को मिला जो उसे रुचता था या जिसकी उसे कामना थी.
कार्तवीर्य ने रात में अपने सचिवों के साथ सभा की तो सब बोले अपने वहां ऐसी सुविधा इतना वैभव कहां यहीं बस जाना चहिये. अगली सुबह कार्तवीर्य जमदग्नि पास पहुंचे और जाने की आज्ञा मांग़ी.
जमदग्नि ने कहा यदि आप जाना ही चाहते हैं तो आपकी इच्छा अन्यथा चाहें तो रुक सकते हैं. सैनिकों की अनिच्छा के बावजूद कार्तवीर्य यह सोचते चल पड़े कि तपोबल से जो वैभव पाया जा सकता है, वह राजसी प्रभाव से भी नहीं.
रास्ते में कार्तवीर्य के मंत्री चंद्रशेखर ने कहा- राजन आपने सारे चमत्कार देखे पर एक वह न देखा जो मैंने देखा. प्रस्थान के समय सारा नगर और वैभव मैंने उस धेनु में समाते देखा. अर्थात यह सब उसी की माया है. आप उस धेनु को प्राप्त कर लीजिए.
यह सुनकर राजपुरोहित ने कहा- ब्राह्मण को दान देना चाहिए न कि उससे छीनना चाहिए. ब्राह्मण का धन या कोई भी वस्तु छीनने के महापाप से पूरा कुल नष्ट हो सकता है. आपको मूर्ख मंत्री की बात नहीं मानना चाहिए.
मंत्री ने कहा कि पुरोहित स्वयं ब्राह्मण है सो अपने वर्ण का पक्ष ले रहा है. महाराज आप क्षत्रियोचित कर्म कीजिये या आज्ञा दीजिये हम हर लते हैं. यह उचित नहीं तो उस गाय का उचित मूल्य देकर के उसे ले लीजिए. मुनि मना न कर पाएंगे.
राजा कार्तवीर्य कुछ सोचकर वापस जमदग्नि के आश्रम की और मुड़ गया. आश्रम में राजा ने अपने मंत्री चंद्रशेखर को भेजा. वह जब आश्रम में पहुंचा राम हवन की समिधा लेने बाहर गये हुये थे.
चंद्रशेखर ने जमदग्नि से गाय के बदले हजार गाय, बहुत सारा सोना देने की बात कही पर जमदग्नि न माने. फिर राजा से पूछकर आधा राज्य देने की बात कही पर जमदग्नि ने साफ कह दिया- यह होम धेनु है. इसे तो देवरज इंद्र को भी न दूंगा.
बात बढ गयी तो चंद्रशेखर ने अपने साथी सैनिकों को बुलाया और धेनु को बलपूर्वक पीट और घसीट कर ले जाने लगा. मुनि उसके गले में बाहें डालकर रोकने लगे तो उनको इतना पीटा गया कि वह चोट खाकर भूमि पर लोट गये.
चाबुक और लाठी खाकर होमधेनु इतनी व्यथित हुई कि उसने अपने सींगो और खुरों पूंछों की मार से सारे सैनिक खदेड़ दिये और स्वयं भी देखते देखते अंतर्धान हो गई. राम जब लौटे तो आश्रम में फैली तबाही और अपने पिता को मृतप्राय देखा.
मां उनके पास बैठी विलाप कर रही थीं. राम के रोष क ठिकाना न रहा. उनके सामने मां ने 21 बार छाती पीटी थी. राम ने प्रतिज्ञा ली कि वह 21 बार हैहयों का समूल नाश किए बिना न मानेंगे.
सबसे बड़ी चिंता पिता जमदग्नि की थी. अचानक ही वहां परदादा भृगु उपस्थित हो गये और मरने वाले को जिला देने वाली विद्या मृत संजीवनी का मंत्र राम से पढवा कर जमदग्नि को जिला दिया.
स्वस्थ हुये जमदग्नि ने भृगु से पूछा- मैंने इसका इतना आतिथ्य सत्कार किया पर इसने मेरे साथ यह व्यवहार क्यों किया? आप सब कुछ जानते हैं कृपया इस रहस्य को कहें.
भृगु ने कहा, कार्तवीर्य मुनिश्रेष्ठ वशिष्ठ द्वारा शापित है. यह घटना उसकी मृत्यु का कारण बनेगी. राम उसको बलपूर्वक मार डालेगा पर कार्तवीर्य भी दत्तात्रेय का शिष्य है, महान है सो राम पर भी भारी पातक लगेगा. क्रमशः जारी…
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश