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पति की सेवा का मौका चूकती नहीं. समय पर भोजन देती हूं. उनसे पहले जगती और बाद में सोती हूं. उनके बाद ही स्नान भोजन करती हूं. पतियों के सामने हमेशा सुंदर,साफ कपड़े पहन तैयार होकर जाती हूं और उनकी पसंद भांप कर उसके मन मुताबिक ही करती हूं.
महाराज युधिष्ठिर के यहां एक लाख दासियां थीं. मैं सबको नाम, काम, और चेहरे से पहचानती थी. महाराज की सवारी में कितने हाथी घोड़े हैं और अस्तबल में कितने सबकी गिनती मुझे पता थी. पूरे अंत:पुर, सेवकों, पशु, पशुपालकों और अतिथियों का प्रबंध मैं ही किया करती थी.
राज्य के खजाने में कितना आया कितना गया यह मेरी नजर में होता था. रोज आठ हजार ब्राह्मण, दस हजार ब्रह्मचारी साधुओं, अठासी हजार स्नातकों को खिलाना, उनको अन्न, वस्त्र इत्यादि का दान दिलवाना मैं ही संभालती थी.
अपनी भूख प्यास और भूलकर पति ,सास और परिवार की सेवा में लगातार लगे रहने और अपने पतियों को तमाम कामकाज से इस तरह निश्चिंत कर देना कि वे आराम से अपने कामकाज और धर्म-कर्म में प्रसन्न मन से लगे रह सकें, यही मेरा पतियों के वश में करने का उपाय हैं.
स्त्री को अपने स्वभाव से पति का हृदय जीत लेना चाहिए. पति को यह आभास होने लगे कि वह अपनी पत्नी के बिना एक पग भी सरलता से नहीं चल सकता, उसकी पत्नी उसे स्वयं से भी ज्यादा अच्छे से समझती है, ऐसे पुरुष पत्नियों के वश में हो जाते हैं. (स्रोत: महाभारत वनपर्व)
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