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आज मकर संक्रांति है. भगवान सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही सात्विक गुणों और शक्तियों का मानव शरीर में संचार बढ़ जाएगा. यह अवसर है जीवन को सकारात्मक रूप में आगे लेकर चलने का.
लोगों के आजकल सबसे ज्यादा प्रश्न इस प्रकार के है- मन में बड़ी निराशा भर गई है, जीवन व्यर्थ लग रहा है. सब मेरे शत्रु बन गए हैं. कोई मेरी तरक्की नहीं देखना चाहता. मैंने तो कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा मेरे साथ ही ऐसा क्यों. ऐसे प्रश्नों के उत्तर आपको स्वयं से मांगने चाहिए.
जीवन में नकारात्मकता आना स्वाभाविक है. हमारा परिवेश, हमारा भोजन, हमारे पास विद्यमान शक्तियां और परलौकिक शक्तियां सभी के प्रभाव के कारण ऐसी भावनाएं आती हैं. इसको लेकर बहुत चिंतित होने की बजाय स्वयं से प्रश्न करना चाहिए.
घर में यदि कचरा आ जाए तो सिर्फ चिंता करने से वह साफ नहीं होगा बल्कि झाड़ू मारने से होगा. जीवन में सकारात्मक विचारों को ज्यादा से ज्यादा स्थान देने के निश्चय के साथ शुरुआत करें समय सुखद मोड़ लेने लगेगा. इसमें ही मैं या कोई और आपकी सहायता कर सकता है.
एक कथा सुनाता हूं. जीवन को देखने के नजरिए से जुड़ी है. आपने शायद पहले भी पढ़-सुन रखा हो पर सकारात्मक चीजों को तो जितना दोहराएं उतना अच्छा. चलिए पहले देखते हैं कथा फिर निष्कर्ष पर भी बात करेंगे. कुछ लाभ दिखे तो दूसरों को भी प्रेरित करिए नहीं तो कथा समझकर भूल जाएं.
एक गुरुकुल के आचार्य अपने शिष्य की सेवा से बहुत प्रभावित हुए. विद्या पूरी होने के बाद जब शिष्य विदा होने लगा तो गुरू ने उसे आशीर्वाद के रूप में एक दर्पण दिया.
वह साधारण दर्पण नहीं था. उस दिव्य दर्पण में किसी भी व्यक्ति के मन के भाव को दर्शाने की क्षमता थी.
शिष्य, गुरू के इस आशीर्वाद से बड़ा प्रसन्न था. उसने सोचा कि चलने से पहले क्यों न दर्पण की क्षमता की जांच कर ली जाए.
परीक्षा लेने की जल्दबाजी में उसने दर्पण का मुंह सबसे पहले गुरुजी के सामने कर दिया.
शिष्य को तो सदमा लग गया. दर्पण यह दर्शा रहा था कि गुरुजी के हृदय में मोह, अहंकार, क्रोध आदि दुर्गुण स्पष्ट नजर आ रहे हैं.
मेरे आदर्श, मेरे गुरूजी इतने अवगुणों से भरे हैं! यह सोचकर वह बहुत दुखी हुआ.
दुखी मन से वह दर्पण लेकर गुरुकुल से रवाना हो गया तो हो गया लेकिन रास्ते भर मन में एक ही बात चलती रही. जिन गुरुजी को समस्त दुर्गुणों से रहित एक आदर्श पुरूष समझता था लेकिन दर्पण ने तो कुछ और ही बता दिया.
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