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एक गांव में भगवती दुर्गा का परम भक्त ब्राह्मण रहता था. गांव का नाम था पीठत और देवीभक्त ब्राह्मण का नाम था अनाथ. वह हर दिन बड़े विधि विधान से जगदंबा देवी की पूजा करता था.

अनाथ की सुमति नामक एक बेटी थी, जो रोज़ पिता की पूजा की तैयारी में हाथ बंटाती और पूजा में शामिल भी होती थी.

एक दिन बालिका सुमति अपनी सहेलियों के संग खेलने लगी. खेल में ऐसी खो गई कि उसे समय का ध्यान ही न रहा. पूजा में समय से पहुंच नहीं पाई.

पिता को पूजा में बेटी के न होने से बड़ी परेशानी हुई तो वह बहुत क्रोधित हो गया.

अनाथ ने उसे डांटते कहा- सुमति तूने आज भगवती का पूजन नहीं किया. यदि ऐसा ही रहा तो देखना मैं किसी दरिद्र और कुष्ठ रोगी से तेरा ब्याह कर दूंगा.

पिता ने सुमति को ऐसे कड़वे और शापित वचन कहे तो उसे बहुत दुःख हुआ. वह विलाप करने लगी. उसे विचार आया कि वह तो प्रतिदिन मां जगदंबा की भक्तिपूर्वक सेवा करती है, परंतु आज ऐसा कैसे हो गया.

उसने अपने पिता से क्षमा मांगी- पिताजी, नादानी में मुझे समय का ध्यान नहीं रहा मैं इसके लिये आपसे क्षमा मांगती हूं. मुझे लगता है कि मां जगदंबा भी मेरी इस भूल को माफ कर देंगी.

पर उसके पिता ब्राह्मण अनाथ का गुस्सा शांत न हुआ.

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