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श्रीधर बेहद गरीब ब्राह्मण थे. छोटी सी कुटिया में रहते थे और उनके कोई संतान न थी. वे धन नहीं पर संतान पाने के लिये मां जगदंबे की पूजा में लगातार लगे रहते थे. सीधे साधे श्रीधर के घर भैरव अपने 360 चेलों के साथ मुसीबत बन पहुंचा.

यह सब मां की माया थी जिसमें भैरव फंसता जा रहा था. भैरव ने गरीब पंडित श्रीधर को खुद सहित 360 चेलों को भोज देने के लिये मजबूर करने और अपने तंत्र मंत्र से डराने लगा. श्रीधर बेहद दु:खी और चिन्तित हुआ. गरीब श्रीधर को खुद का भोजन मुहाल था, इतना बड़ा भोज भंड़ारा कहां से देता. भैरव से भयभीत हो कर श्रीधर ने भगवती का ध्यान किया.

रात में मां सपने में आयीं और कहा, श्रीधर चिंता मत करो, भंडारे के लिये हां कह दो. समूचे गाव वालों को भी न्योत दो, मैं ही तुम्हारा सब प्रबंध कर दूंगी. सुबह श्रीधर ने भैरव नाथ को भंडारा देने को कह दिया. चमत्कार हो गया सोने-चांदी के बर्तनों में तमाम तरह तरह के पकवान वहां आ गये और उसके साथ आई एक सुंदर सी कन्या.

श्रीधर की झोपड़ी के बाहर ही भूमिका नामक स्थान पर भैरव सहित 360 लोग एक तरफ तो इतने ही गांव वाले दूसरी तरफ बैठ जीमने बैठे. माता एक सुंदर सी किशोरी के रूप में खुद ही भोजन परोसने में श्रीधर का साथ दे रही थीं.

अचानक भैरवनाथ को शंका हुई कि इतने बढिया पकवान वह भी सोने चाँदी की थाली में और भरपूर मात्रा में. इस छूटे से गांव के गरीब ब्राह्मण के घर बस रात भर की तैयारी में. ज़रूर दाल में कुछ काला है. देवी भक्त श्रीधर तो मेरे से परेशान हुआ ही नहीं. सो उसने एक चाल चली.

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