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कुछ रथ पर, कुछ अश्व पर या हाथी पर विराजते हैं। उन सबके साथ भला गणेश जी कैसे दौड़ सकतेथे? देवर्षि नारदजी की सम्मति से गणेशजी ने भूमि पर ‘राम’ भगवान का यह नाम लिखा औऱ उसी की प्रदक्षिणा करके ब्रह्मा जी के पास पहुँच गए।
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने उन्हीं को प्रथम पूज्य बताया क्योंकि ‘राम’ नाम तो साक्षात् श्रीराम का स्वरूप है औऱ श्रीराम के तो रोम-रोम में कोटि-कोटि ब्रह्मांड हैं। श्री गणेश जी ने राम-नाम की परिक्रमा करके समस्त ब्रह्मांडों की परिक्रमा कर ली थी।
एक कथा यह भी है कि श्री गणेश जी ने अपने माता-पिता की ही प्रदक्षिणा की क्योंकि ‘माता साक्षात् क्षितेस्तनुः’ अर्थात् माता साक्षात् पृथ्वीस्वरूप एवं पिता प्रजापति के स्वरूप हैं। कल्पभेद से दोनों ही कथाएँ सत्यस्वीकृत हैं। (कल्याण से साभार)
संकलनः रंजना श्रीवास्तव
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