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अपने अंदर की शक्तियों को पहचानिये, उन्हें पर्वत, गुफा या समुद्र में मत ढूंढिए बल्कि अपने अंदर खोजिए और अपनी शक्तियों को निखारिए. हथेलियों से अपनी आँखों को ढंककर अंधकार होने की शिकायत मत कीजिए.

आंखें खोलिए. अपने भीतर झांकिए और अपनी अपार शक्तियों का प्रयोग कर अपना हर एक सपना पूरा कर डालिए.

यह प्रेरक कथा मनोज त्रिपाठीजी ने बनारस से भेजी है. मनोजजी की भेजी कई कथाएं पहले भी प्रभु शरणम् में प्रकाशित हो चुकी हैं.

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