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एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया. राजा भोज की दृष्टि उस पर पड़ी तो उसे देखते ही अचानक उनके मन में विचार आया कि कुछ ऐसा किया जाए ताकि इस व्यापारी की सारी संपत्ति छीनकर राजकोष में जमा कर दी जाए.

व्यापारी जब तक वहां रहा भोज का मन रह रहकर उसकी संपत्ति को हड़प लेने का करता. कुछ देर बाद व्यापारी चला गया. उसके जाने के बाद राजा को अपने राज्य के ही एक निवासी के लिए आए ऐसे विचारों के लिए बड़ा खेद होने लगा.

राजा भोज ने सोचा कि मैं तो प्रजा के साथ न्यायप्रिय रहता हूं. आज मेरे मन में ऐसा कलुषित विचार क्यों आया? उन्होंने अपने मंत्री से सारी बात बताकर समाधान पूछा. मन्त्री ने कहा- इसका उत्तर देने के लिए आप मुझे कुछ समय दें. राजा मान गए.

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