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साधु बोला- मैंने अपने जीवन में कभी कोई पाप नहीं किया. मैं हमेशा भक्ति में लीन रहा हूं और दूसरों को भी भक्ति की राह पर चलने की सीख दी है. मैंने लोक में अच्छे कार्य किए.

जो लोक में अच्छे कार्य करते हैं उनका परलोक सुधरता है. इसलिए ऐसे में लगता है कि मुझे स्वर्ग मिलना चाहिए. और मेरे सुख-सुविधाओं का पूरा ख्याल होना चाहिए.

यमराज ने डाकू से पूछा- तुम्हें भी कुछ कहना है? डाकू बोला- प्रभु, मैंने तो जीवनभर लूटपाट की है. अब मैं किसी अच्छे परिणाम की अपेक्षा तो रख नहीं सकता. मेरे कर्मों का जो भी दंड हो, वह मुझे दें.

यमराज ने कहा- हम तुम्हारे दंड का विधान बाद में करेंगे. फिलहाल तुम रोज इस साधु की सेवा किया करो. डाकू तो यमराज की आज्ञा मान तुरंत साधु की सेवा के लिए तैयार हो गया, किंतु साधु डाकू से सेवा लेने को तैयार नहीं था.

साधु ने यमराज से कहा- महाराज, यह कैसा आदेश है? मैं तो इस पापी के स्पर्श से भ्रष्ट हो जाऊंगा. मैंने अपनी भक्ति से जो पुण्य अर्जित किया है, वह सब नष्ट हो जाएगा.
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