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कथा को अंत तक पढ़िएगा क्योंकि कथा जो बात समझाना चाहती है उसकी पहली नसीहत है- धैर्य रखो. पहली नजर में हो सकता है आपको लगे कि यह कहानी तो पता है पर आप धैर्य से पढ़िए. कहानियां आनंद के लिए ही सिर्फ है इनका मर्म समझना होगा. वह तो धैर्य से ही मिलेगा.

एक राजा था. स्वभाव का बड़ा क्रोधी. कोई गलती या अपराध करे यह उसे बिलकुल पसंद नहीं था. अगर किसी ने अपराध कर दिया तो राजा उसे बड़ा कठोर दंड देता था. कठोर क्या, अमानवीय दंड देता था राजा.

उस राजा ने दस खूंखार जंगली कुत्ते पाल रखे थे. जो कोई भी गलती करता तो राजा उसे कुत्तों के आगे डाल देता.

कुत्तों को भूखा रखा जाता था. इसलिए भूखे कुत्ते क्या हश्र करते थे, बताने की जरूरत नहीं. मामूली गलतियों के लिए भी राजा ऐसी भयंकर मौत की सजा दे देता था.

एक बार राजा के वर्षों पुराने भरोसेमंद एक मंत्री से कोई गलती हो गई. हालांकि गलती बहुत बड़ी नहीं थी और मंत्री राजा और राज्य की लंबे समय से सेवा कर रहे था फिर राजा ने उसे भी शिकारी कुत्तों के आगे फिंकवाने का हुक्म दे दिया.

मृत्युदंड देने के बाद राजा ने मंत्री से उसकी आखिरी इच्छा पूछी.

मंत्री बोला- महाराज! मैंने आज्ञाकारी सेवक की तरह आपकी बीस सालों से सेवा की है. मैं चाहता हूं कि मुझे सजा देने से पहले 20 दिनों की मोहलत दी जाए. राजा मान गया.

बीस दिन बाद राजा का हुक्म पूरा करने के लिए सिपाही उस मंत्री को पकड़ लाए. राजा का इशारा पाते ही उसे खूंखार कुत्तों के सामने फेंक दिया गया. परंतु यह क्या! कुत्ते मंत्री पर टूट पड़ने की बजाए उसके साथ खेलने लगे.

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