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वेणिका के इस निर्धन ब्राह्मण ने अत्यंत श्रद्धा से आप की समुचित सेवा की. परंतु सत्य तो यह है कि उसको आपने आशीर्वाद के रुप में शाप ही दिया है. आपने उसके साथ ऐसा अन्याय क्यों किया?
भगवान हंसने लगे. फिर कहा– नारद! ब्राह्मण के लिए एक दिन हल जोतने से जितना पाप होता है वह वर्ष भर मछली पकड़ने के बराबर ही है. सीरभद्र वैश्य अपने पुत्र-पौत्रों के साथ निरंतर धनार्जन के कार्य में लगा हुआ है. उसका पाप बड़ा है.
सीरभद्र जैसे नरक गामी के घर पर हमने न भोजन किया न ही विश्राम. उसके कुकृत्यों और उसकी अपेक्षा के अनुरूप के अनुरूप ही उसको मेरा आशीर्वाद भी था.
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