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भगवान उसी के घर की और बढे. दोनों उसके घर पहुंचे तो गोस्वामी अपनी खेती की गहन चिंता में डूबा था. भगवान ने उससे कहा- विप्रवर हम बहुत दूर से आए हैं. अब हम तुम्हारे अतिथि हैं. हम भूखे हैं, हमें भोजन कराओ.
गोस्वामी ने अपने गृहस्थ धर्म का पालन करते हुये दोनों के लिए स्नान-विश्राम का प्रबंध किया और भोजन आदि कराया, दोनों ने रात वहीं बितायी.
सूर्योदय से पूर्व ही निद्रात्याग भगवन उठे और ब्राह्मण से कहा– हम तुम्हारे आतिथ्य से प्रसन्न हैं. आपने अपने सामर्थ्य भर हमारी उत्तम सेवा की. रात्रि में भी हम सुखपूर्वक रहे, अब प्रस्थान करेंगे.
परमेश्वर करे कि तुम्हारी खेती पूर्णत: निष्फल हो. निश्चय ही तुम्हारी सन्तति की संख्या में कोई वृद्धि न हो. इतना कहकर भगवान ने नारद जी को संकेत किया और दोनों वहां से प्रस्थान कर गए.
गांव जब बहुत पीछे छूट गया तो चकित, शांत और शोचनीय मुद्रा में चल रहे नारदजी ने मार्ग में ही पूछा– भगवन! वैश्य ने आपकी कुछ भी सेवा नहीं की, किन्तु उसको आपने उत्तम वर क्यों दिया?
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