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भगवान राम को वन जान है इस बात का जब फैसला हुआ तब तो त्रिजट रास्ते में था इसलिये उसको न तो भगवान के वन जाने के बारे में ही और न ही उनके द्वारा मनाये जा रहे उस ‘वन यात्रा दान महोत्सव’ के बारे में कुछ पता था. इसलिये वह श्रीरामचंद्रजी के पास पहुंचते अपना दुखड़ा रोने लगा.

वह बोला, हे राजकुमार, मैं निर्धन हूं, मेरी बहुत सी संतानें हैं. आप मेरी दशा को देखें. आपके ही राज में रहता हूं. ब्राह्मण हूं. मेरे ऊपर कुछ कृपादृष्टि फेरिये. कुछ सहायता कीजिये.

त्रिजट का सींक जैसा शरीर देख कर और बहुत सी संतानों की बात सुन कर वन जाने को तैयार भगवान को उस परिस्थिति में भी हंसी सी आ गयी.
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