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शेर ने कहा- आपको बुद्धिमान समझ मैंने आपको समझाने का अपना फर्ज निभाया. आगे आपकी इच्छा. मुझे तो भोजन चाहिए. गाय न सही आप ही सही. राजा दिलीप उम्मीद कर रहे थे कि उन पर शेर झपटने ही वाला होगा पर उनपर फूलों की बारिश होने लगी.
वह चौंककर उठे. शेर कहीं नहीं था. सामने नंदिनी खड़ी कह रही थी, तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ही मैंने माया रची थी. अब उठो. पेड़ से पत्ता तोडो. उसमें दूहकर मेरा थोड़ा दूध पी लो. तुम्हें तेजस्वी संतान प्राप्त होगी.
दिलीप ने उठकर नंदिनी को पैर छूकर प्रणाम किया और बोले- देवि, आपके दूध पर पहला अधिकार बछड़े का है. उसके बाद गुरु वशिष्ठ का. बछड़े के पी लेने के बाद यदि गुरुजी की आज्ञा होगी तभी दूध ग्रहण कर सकता हूं.
शाम को महाराज दिलीप नंदिनी को लेकर वन से लौटे तो सारी कथा गुरु वशिष्ठ को सुनाई. वह बहुत खुश हुए. उनसे आशीर्वाद और आज्ञा लेकर दिलीप ने नंदिनी का दूध पिया और अद्भुत गो सेवा के पुण्य से उन्हें रघु जैसे पराक्रमी और सत्यनिष्ठ पुत्र प्राप्त हुए. उन्हीं के नाम पर रघुकुल हुआ जिसमें जन्मे भगवान श्रीराम.
(स्रोत: कालिदास रचित महाकाव्य रघुवंश)
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश
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