हमारा फेसबुक पेज लाईक करें.[sc:fb]
एक दिन जंगल में महाराजा दिलीप की नजर जरा हटी नहीं कि उधर नंदिनी गौ पास की गुफा में घुस गयीं. गुफा में एक शेर था. शेर ने नंदिनी को पकड़ लिया. करुण पुकार कर नंदिनी के डकारने लगी तो दिलीप दौड़ कर वहां पहुंचे.
शेर नंदिनी को दबोचे बैठा था. दिलीप ने तुरंत बाण तान दिया. इससे पहले कि बाण छूटता शेर आदमी की बोली में बोला- बेकार की कोशिश मत करो. मैं कोई ऐसा वैसा शेर नहीं मां पार्वती की कृपा है मुझ पर.
शेर ने बताया- मैं पार्वती माता के हाथों से लगाए देवदारू के पेड़ों की रखवाली में हूं. जो भी जीव जंतु इधर आए उसे खाने की आज़ादी है मुझे. राजा दिलीप ने जब सुना कि यह सिंह माता पार्वती की सेवा में है तो बड़े धर्मसंकट में पड़ गए.
दिलीप ने कहा- हे वनराज! आप माता पार्वती के सेवक हैं इसलिए आपको प्रणाम करता हूं. परंतु यह मेरे गुरु की गाय है. यदि मैं इसकी रक्षा न कर पाया तो मुझे दोष लगेगा. आप कृपा कर इस गाय को छोड़ दें. मुझे खाकर अपनी भूख शांत करें.
शेर बोला- आप राजा हैं, आप पर प्रजा की जिम्मेदारी है. आप युवा हैं. जीवन में बहुत सुख भोगने बाकी हैं, फिर एक गाय के लिए अपने प्राण क्यों देते हैं. आप तो इस गाय के बदले हजार गायें अपने गुरु को दे सकते हैं. पर दिलीप न माने.
दिलीप बोले- ऐसे व्यक्ति का जीवन धिक्कार है जिसके सामने कोई गाय मार दी जाए. फिर यह तो मेरे गुरु की गाय है. मुझे सुख भोग की लालसा नहीं तुम तो मेरे प्राण ले लो और गाय को छोड़ दो. यह कहकर सिर झुका कर वहीं बैठ गए.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.