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उन्होंने कहा- हे रणकौशल दैत्य, तू धन्य है. मेरे इतने प्रहारों को झेलने के बाद भी मुझसे मल्लयुद्ध का साहस कर रहा है. मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं. तू जो चाहे वरदान मांग ले. आज मैं तुम्हें अदेय भी देने को इच्छुक हूं.
भगवान की बात सुनकर जलंधर ने कहा- हे हरि यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो यह वरदान दीजिए कि आप मेरी बहन लक्ष्मी तथा सारे कुटुंबजनों के साथ मेरे घर पर निवास करेंगे.
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