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शर्त लगाकर श्रीराधा आंख मूंद ध्यान में बैठ श्रीकृष्ण का एक-एक नाम लेकर पुकारने लगीं. जैसे जैसे श्रीराधा का ध्यान और दिल से की जाने वाली पुकार बढ रही थी सामने बैठी गोपदेवी का शरीर कांपता जा रहा था.

श्रीराधा के चेहरे पर अब आंसुओं की झड़ी दिखने लगी. माया की सहायता से गोपदेवी का रूप लिए भगवान श्रीकृष्ण समझ गये कि प्रेम की ताकत के आगे अब यह माया नहीं चलने वाली, मेरा यह रूप छूटने वाला है.

वे रूप बदलकर श्री राधे-राधे कहते प्रकट हो गए और बोले- राधारानी आपने बुलाया. मैं भागता चला आ गया. श्रीराधाजी चारों ओर देखने लगीं तो श्रीकृष्ण ने पूछा, अब किसको देख रही हैं.

वे बोली- गोपदेवी को बुलाओ, वह कहाँ गई? श्री कृष्ण बोले- जब मैं आ रहा था तो कोई जा रही थी, कौन थी? राधा रानी ने उन्हें सारी बातें बतानी शुरू की और श्रीकृष्ण सुनने चले गए.

मंद-मंद मुस्काते हुए श्रीकृष्ण ने कहा- आप बहुत भोली हैं. ऐसी नागिनों को पास मत आने दिया करें. (स्रोत: श्रीगर्ग संहिता)

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

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