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श्रीराधेजी इस बात पर हंसने लगीं तो गोपदेवी बोली- सखी यह हंसने की बात नहीं है. वह कला कलूटा, ग्वाला, न धनवान, न वीर, आचरण भी अच्छे नहीं, मुझे तो वह निर्मोही भी लगता है. सखी ऐसे लड़के से तुम कैसे प्रेम कर बैठी. मेरी मानो तो उसे दिल से निकाल दो.
श्रीराधा जी बोलीं- तुम्हारा नाम गोपदेवी किसने रखा? वह ग्वाला है इसलिए सबसे पवित्र है. सारा दिन पवित्र पशु गाय की चरणों की धूल से नहाता है. तुम उन्हें निर्धन ग्वाला कहती हो? जिनको पाने को लक्ष्मी तरस रही हैं.
ब्रह्माजी, शिवजी भी श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं. उनको काला कलूटा और उसे निर्बल बताती हो जिसने बकासुर, कालिया नाग, यमलार्जुन, पूतना जैसों का चुटकी में वध कर ड़ाला.
जो अपने भक्तों के पीछे पीछे इसलिए घूमते हैं कि उनकी चरणों की धूल मिल जाये. उसे निर्दयी कहती है. गोपदेवी बोली- राधे तुम्हारा अनुभव अलग है और मेरा अलग. किसी अकेली युवती का हाथ पकड जबरन दही छीनकर पी लेना क्या सज्जनों के गुण हैं?
श्रीराधे ने कहा- इतनी सुंदर होकर भी उनके प्रेम को नहीं समझ सकी! बड़ी अभागिन है. यह तो तेरा सौभाग्य था पर तुमने उसको गलत समझ लिया. गोपदेवी बोली- अच्छा तो मैं अपना सौभाग्य समझ के सम्मान भंग कराती. अब बात बढ़ गई थी.
आखिर में गोपदेवी बोली- अगर तुम्हारे बुलाने से श्रीकृष्ण यहां आ जाते हैं तो मैं मान लूंगी कि तुम्हारा प्रेम सच्चा है और वह निर्दयी नहीं है. और यदि नहीं आये तो…? इस पर राधा रानी बोलीं कि यदि नहीं आये तो मेरा सारा धन, भवन तेरा.
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Jai Sri Radhe Krishna. Har Har Mahadev