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थोड़ी ही देर में गोपदेवी श्रीराधा और बाकी सखियों से साथ घुल-मिलकर गेंद खेलने और गीत गाने के बाद बोली- मैं दूर रहती हूं. रास्ते में रात न हो जाए इसलिए मैं अब जाती हूं.

उसके जाने की बात सुन श्रीराधा की आंख से आंसू बहने लगे. वह पसीने-पसीने हो वहीं बैठ गईं. सखियों ने तत्काल पंखा झलना शुरू किया और चंदन के फूलों का इत्र छिड़कने लगी.

यह देख गोपदेवी बोली- सखि राधा मुझे जाना ही होगा. पर तुम चिंता मत करो सुबह मैं फिर आ जाउंगी. अगर ऐसा न हो तो मुझे गाय, गोरस और भाई की सौगंध है. यह कह वह सुंदरी चली गई.

सुबह थोड़ी देर से गोपादेवी श्रीराधाजी के घर फिर आयी तो वह उसे भीतर ले गयीं और कहा- मैं तुम्हारे लिए रात भर दुखी रही. अब तुम्हारे आने से जो खुशी हो रही है उसकी तो पूछो नहीं.

श्रीराधाजी की प्रेम भरी बातें सुनने के बावजूद जब गोपादेवी ने कोई जवाब नहीं दिया और अनमनी बनी रही तो श्री राधाजी ने गोपादेवी की इस खामोशी की वजह पूछा.

गोपादेवी बोली- आज मैं दही बेचने निकली. संकरी गलियों के बीच नन्द के श्याम सुंदर ने मुझे रास्ते में रोक लिया और लाज शरम ताक पर रख मेरा हाथ पकड़ कर बोला कि मैं कर (टैक्स) लेने वाला हूं. मुझे कर के तौर पर दही का दान दो.

मैंने डपट दिया. चलो हटो, अपने आप ही कर लेने वाला बन कर घूमने वाले लंपट मैं तो कतई तुम्हें कोई कर न दूंगी. उसने लपक कर मेरी मटकी उतारी और फोड़कर दही पीने के बाद मेरी चुनरी उतार कर गोवर्धन की ओर चल दिया. इसी से मैं क्षुब्ध हूं.
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