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ग्रहों के बीच सेनापति मंगल ग्रह के जन्म की दो कथाएं विभिन्न पुराणों में आती हैं. ब्रह्मवैवर्त पुराण और देवी भागवत की कथा पढ़ें, स्कंद पुराण की कथा कुछ देर में…

श्रीहरि ने नरसिंह अवतार लेकर दैत्यराज हिरण्यकश्यपु का वध करके हरिभक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी. हिरण्यकश्यपु की हत्या से क्रोधित उसके भाई हिरण्याक्ष ने बदला लेने की सोची.

उसने घोर तप करके अनंत शक्तियां प्राप्त कीं और देवों को परास्त किया. देवताओं को शक्ति पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले यज्ञ-हवन से मिलती थी.

इसलिए देवताओं को निर्बल करने के उद्देश्य से हिरण्याक्ष ने पृथ्वी का हरण कर लिया और उसे रसातल में छिपा दिया. पृथ्वी ने श्रीहरि से रक्षा की गुहार लगाई.

श्रीविष्णु ने वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया तथा रसातल से पृथ्वी को निकालकर सागर पर स्थापित कर दिया. उसके बाद ब्रह्मा ने पृथ्वी पर सृष्टि रचना की.

पृथ्वी ने एक बार देवों से कहा था कि वह सारे कष्ट सहकर मानवों के लिए आश्रय देती हैं लेकिन वह खुद को अकेला महसूस करती हैं. उन्हें श्रीहरि से प्रेम था और विवाह करना चाहती थीं.

श्रीहरि ने विवाह में असमर्थता जताई थी. पृथ्वी ने श्रीहरि के अंश को अपने गर्भ से जन्म देने की लालसा बताई थी. प्रभु ने पृथ्वी से कहा था कि समय आने पर यह इच्छा पूरी होगी.

हिरण्ययाक्ष के बंधन से मुक्ति पाकर देवी पृथ्वी सकाम रूप में वराहरूप धारी श्रीहरि विष्णु की वंदना करने लगीं. पृथ्वी के मनोहर सकाम रूप को देख कर श्रीहरि ने प्रेम निमंत्रण स्वीकार लिया उनके साथ एक वर्ष बिताया.

पृथ्वी और श्रीहरि के संयोग से पृथ्वी के गर्भ से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसमें श्रीहरि सा तेज और शक्ति तथा पृथ्वी के समान गंभीरता थी.

चार भुजाओं वाले उस परम तेजस्वी बालक का शरीर तेज के कारण लाल रंग का था. उसका नाम मंगल हुआ और उसे ग्रहों का सेनापति बनाया गया.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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