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अब हम किसकी शरण में जाएँ? कौन हम सबकी रक्षा करेगा? आप ही भगवान् शिव के घर में अवतार लेकर इस दुष्ट बुद्धि असुर को मारिए. देवताओं और ऋषियों की विनती से प्रसन्न हो गणेशजी ने सिंदूरासुर के संहार के लिए अपनी हामी भर दी.

गजानन राजा वरेण्य और पुष्पिका को दिया वचन भूले न थे. उनकी योगमाया-शक्ति ने सब योजना पहले से ही बना ही रखी थी. महारानी गर्भवती थीं उचित समय पर गणेशभक्त महारानी पुष्पिका ने एक बालक को जन्म दिया.

प्रसव पीड़ा इतनी हुई कि वे बालक के पैदा होते समय वे बेहोश हो गई. उन्हें मूर्च्छित देख बालक को एक खतरनाक राक्षसी उठा ले गई. रास्ते में शिवगण नंदी ने उस राक्षसी को बालक को ले जाते देख लिया.

भगवान् गजानन के माता-पिता यानी गौरी-शंकर को अपने पुत्र के वरदान देने की जानकारी थी ही. अतः उन्होंने नंदी से कहा कि वे बाल गणेश को रानी पुष्पिका के पास वापस पहुंचवा दें.

शिवगण नंदी ने भगवान् बाल गजानन को फिर से रानी पुष्पिका के पास पहुँचा दिया. बेहोशी टूटी तो रानी पुष्पिका अपने बगल में अदभुत बालक देख चीख उठीं. उनका बेटा चार हाथ वाला था, सिर हाथी का और शरीर लाल था.

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