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सिर पर बाल झडऩा युवाओं में एक आम समस्या हैं। यह आजकल की अनियमित दिनचर्या का नतीजा तो है ही साथ ही इसमें जन्म पत्रिका में स्थित सूर्य महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
सूर्य लग्र में द्वितीय स्थान में, द्वादश में कैसी भी स्थिति में हो वह जातक को गंजापन देता है।
सूर्य लग्र का होने पर यदि नीच का हो तो जातक छोटी उम्र में ही गंजा हो जाता है।
सूर्य यदि द्वितीय या द्वादश भाव में शत्रु राशि का या नीच का हो तो जातक को किसी बीमारी की वजह से गंजापन आता है।
यदि पत्नी की पत्रिका में सप्तम स्थान पर सूर्य स्थित हो तो पति को गंजरोग होता है।
यदि स्त्री की पत्रिका में सूर्य सप्तम स्थान पर हो तो उसको चश्मेवाला तथा गंजे सिर वाला पति प्राप्त होता है।

गंजेपन से बचने का उपाय –
सूर्य उपासना करें।
घोड़े या गधे के खुर की राख को खोपरे के तेल में मिलाकर सिर पर लगाने से गंजपन रोग समाप्त हो जाता है।
घोड़े की लीद को पीसकर छानकर खोपरे के तेल में मिलाकर लगाने से गंजपन रोग का नाश होकर बाल उग आते हैं।
काले तिल, भृंगराज, हरड़, बहड़, आवंला का चूर्ण रोजाना रात को फांकने से बाल जल्दी आ जाते हंै।

सच है कि कर्मस्वातंत्र्य मनुष्य देह की विशेषता है और इसी स्वतन्त्रता के कारण ही वह कर्मफलस्वरूप भाग्य को स्थगित या परिवर्तित भी कर सकता है। विभिन्न प्रकार के पूजा,पाठ, दान-पुण्य, अनुष्ठान, व्रत उपवास, मन्त्र जाप, गाय/कुत्ते/पक्षियों इत्यादि की सेवा, बुजुर्गों के चरण स्पर्श, रत्न धारण, औषधी स्नान जैसे उपचार उसी कर्म के प्रतिप्रसव हैं, जो भाग्य के रूप में हमारे पर लद गया है। हम हारते क्यों हैं? नियतिप्रदत स्थितियों के आगे हम विवश क्यों हो जाते हैं? सिर्फ इसलिए कि अपने द्वारा किए गए जिस कर्म के परिणाम के रूप में हम भाग्य को भोग रहे हैं, उसे स्थगित करने योग्य कर्मबल हमारे पास नहीं होता। किन्तु भाग्यजनित इन परिस्थितियों से मुक्ति हेतु ज्योतिष में जो उपरोक्त विभिन्न प्रकार के उपाय बताए गए हैं, वो एक प्रकार से हमारे लिए उस योग्य कर्मबल अर्जन का एक साधन मात्र ही बनते हैं।जन्म कुंडली में भावगत ग्रह शुभ स्थिति में है, तो व्यक्ति को परिणाम भी अच्छे मिलते हैं। यदि अशुभ स्थिति में है, तो बनते हुए काम भी बिगड़ जाएंगे। प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल बनाने के लिए ग्रह संबंधी मंत्र का जप या व्रत करें अथवा ग्रह संबंधी वस्तुओं का दान करें। यह उपाय इतने सरल और सुगम हैं, जिन्हें कोई भी साधारण व्यक्ति बडी आसानी से कर सकता है ।
प्राचीन वैद्य रोग निदान एवं साध्यासाध्यता के लिए पदे-पदे ज्योतिषशास्त्र की सहायता लेते थे। योग-रत्नाकर में कहा है कि- ‘‘औषधं मंगलं मंत्रो, हयन्याश्च विविधा: क्रिया। यस्यायुस्तस्य सिध्यन्ति न सिध्यन्ति गतायुषि।। अर्थात औषध, अनुष्ठान, मंत्र यंत्र तंत्रादि उसी रोगी के लिये सिद्ध होते हैं जिसकी आयु शेष होती है। जिसकी आयु शेष नहीं है; उसके लिए इन क्रियाओं से कोई सफलता की आशा नहीं की जा सकती। यद्यपि रोगी तथा रोग को देख-परखकर रोग की साध्या-साध्यता तथा आसन्न मृत्यु आदि के ज्ञान हेतु चरस संहिता, सुश्रुत संहिता, भेल संहिता, अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, चक्रदत्त, शारंगधर, भाव प्रकाश, माधव निदान, योगरत्नाकर तथा कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं परन्तु रोगी या किसी भी व्यक्ति की आयु का निर्णय यथार्थ रूप में बिना ज्योतिष की सहायता के संभव नहीं है।
आधुनिक समय में हम प्रतिदिन देख रहे हैं कि महँगे नैदानिक उपकरणों एवं तकनीकों की सहायता से मानव शरीर के अंगों-प्रत्यंगों तथा धातुओं-उपधातुओं के परीक्षणोपरान्त भी डॉक्टर (Doctor) किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाते हैं। ऐसे में समझदार आस्तिक लोग ज्योतिषशास्त्र के द्वारा रोग निदान में सहयोग लेकर रूग्विनिश्चय (Diagnosis) कर निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचते हैं और तद्नुसार औषधोपचार तथा अनुष्ठान का सहारा लेकर व्याधि से छुटकारा प्राप्त कर सुखी होते हैं।
महर्षि चरक अपने ग्रंथ चरक संहिता में दैव तथा तथा कर्मज व्याधियों की व्याख्या करते हुए शारीस्थान में समझाते हैं-
‘‘नहिकर्म महत् किंचित् फलं यस्य न भुञ्जते।
क्रियाध्ना कर्म जारोगा: प्रशमंयान्ति तत्क्षयात्।।
निर्दिष्टं दैव शब्देन कर्मं यत् पौर्व दैहिकम्।
हेतु स्तदपि कालेन रोगाणामुपलभ्यते।।
उपचारों का विकास तो इसपर विश्‍वास होने या इस क्षेत्र में बहुत अधिक अनुसंधान करने के बाद ही हो सकता है। अभी तो परंपरागत ज्ञानों की तरह ही ज्‍योतिष के द्वारा किए जाने वाले उपचारो को बहुत मान्‍यता नहीं दी जा सकती , पर ग्रहों के प्रभाव के तरीके को जानकर अपना बचाव कर पाने में हमें बहुत सहायता मिल सकती है।

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